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________________ ... प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक । सन् १९४३ के जनवरी से अप्रैल तक जैसलमेर के जैनग्रन्थ - भण्डारों का जब हमने विशेष रूप से अवलोकन किया तब राजस्थान के उस विशिष्ट ग्रन्थ भण्डार में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं प्राचीन राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषा में रचे हुए, अनेकानेक ऐसे छोटे - बड़े ग्रन्थ हमारे देखने में आये, जो अन्यत्र अप्राप्य अथवा बहुत ही दुर्लभ्य होकर साहित्यिक संपत्ति की दृष्टि से बहुत ही महत्त्व रखते हैं। करीब ५ महीने हमारा वहां पर निवास रहा और हमने यथाशक्य छोटी - बड़ी ऐसी सैकड़ों ही साहित्यिक रचनाओं की इस दृष्टि से प्रतिलिपियां आदि करी- कराई कि जिनको भविष्य में यथासाधन प्रकाशित करने - कराने का प्रयत्न किया जा सके। इन में से कई ग्रन्थों के मुद्रण एवं प्रकाशन का कार्य तो हमने हमारी स्वसंस्थापित एवं स्वसंचालित सिंघी जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रारंभ कर दिया, जो बंबई के भारतीय विद्या भवन के अन्तर्गत सिंघी जैनशास्त्र शिक्षापीठ के तत्वावधानमें, शनैः शनैः प्रकाश में आ रहे हैं। सन् १९५० में राजस्थान सरकार ने हमारी प्रेरणा से राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर की (जिस का नाम अब 'राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' ऐसा रखा गया है) स्थापना की और इस के कार्य - संचालन का भार हमें सौंपा गया। तभी से, जैसलमेर के ग्रन्थ - भण्डार में राष्ट्रीय वाङ्मय महानिधि के बहुमूल्य रत्नसमान जो सैकड़ों ग्रन्थ अव्यवस्थित, अरक्षित एवं अज्ञात स्वरूप अवस्था में पड़े हुए हैं तथा जो दिन प्रतिदिन विनाशकारी परिस्थिति की ओर अग्रसर हो रहे हैं, उन ग्रन्थरत्नों की सुस्थिति, सुरक्षा एवं सुप्रसिद्धि करने का राजस्थान सरकार द्वारा विशिष्ट एवं सुमहत् प्रयत्न होना चाहिये - ऐसा हमारा सतत प्रयत्न चालू रहा। नूतन भारत के उत्कट विद्या - विज्ञान प्रेमी एवं भारत की प्राचीन साहित्यिक सम्पत्ति का उत्तम मूल्याङ्कन करने वाले हमारे महामान्य राष्ट्रपति डॉ० श्री श्रीराजेन्द्रप्रसाद महोदय · तथा नूतन भारत के प्राणप्रतिष्ठाता महामात्य श्री श्रीजवाहरलाल नेहरु को भी जैसलमेर के इस मूल्यवान् ज्ञाननिधि का जब परिचय हुआ तो उनने भी इसके संरक्षण और प्रकाशन की तरफ राजस्थान सरकार का लक्ष्य आकृष्ट किया । हर्ष का विषय है कि राजस्थान सरकार ने इस विषय में अब सुव्यवस्थित कार्य करने की एक योजना स्वीकृत की है और उसके द्वारा, हमारे निर्देशन में, जैसलमेर के ग्रन्थरत्नों की सुरक्षा और प्रसिद्धि का कार्यक्रम चालू किया गया है। इस कार्यक्रम के अनुसार ‘राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' के अन्तर्गत एक स्वतन्त्र
SR No.034218
Book TitleKavya Prakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMammatacharya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1959
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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