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________________ अपनी टीका के लिये गदाधर बहुत प्रसिद्ध है । मित्रा ने १५२७ Sc. C. ७. १३ में इसका उल्लेख किया है। [३८] कवि-नन्दिका- रामकृष्ण ( सन् १५५० से १६५० ई० ) इस टीका का प्रपर नाम 'नन्दिनी' भी दिया गया है। काव्यप्रकाश का भावार्थ इसमें संकलित किया है। इस टीका का रचना काल ई० १६०१ ई. माना है, अतः इनका स्थिति काल सन् १५५६ १६५० ई० के बीच रहा है। P३६ ] टीका- म०म० पण्डितराज ( १७वीं शताब्दी ई. से कुछ पूर्व) रलकण्ठ ने 'सार-समुच्चय' में इस टीका का उल्लेख किया है। ये धर्म-शास्त्रज्ञ महेश ठक्कुर के शिष्य रघुनन्दनराय ही थे। इन्हें पण्डितराज जगन्नाथ मानना, भूल होगी। स्टीन ने पाण्डुलिपि ११६४ पृ०६०, २६६ पर इनका उल्लेख किया है, (प्रौफेक्ट i १९ A)। स्टीन की पाण्डुलिपि केवल द्वितीय उल्लास तक ही है और मिश्र तथा प्रत्यभिज्ञाकार के अतिरिक्त उसमें किसी भी अधिकारी आचार्य का वर्णन नहीं है। म०म० डॉ० गङ्गानाथ झा ने अपने 'काव्यप्रकाश' के अंग्रेजी अनुवाद-प्रकाशन की भूमिका में इस टीका की पाण्डुलिपि का (जो कि १६३७ ई० में तैयार की हुई है) सूचन करते हुए प्रस्तुत टीका का आदि और अन्त का भाग इस प्रकार सूचित किया है - (प्रारम्भ) रघुवंशजलधिचन्द्रं रावणवरदन्ति-पारोन्द्रम् । सीतामुदित-मयूरोमुदिरमुदारमहं कलये ॥१॥ मोलो निधाय पाणी वाणीमनिशं नमस्कृत्य । पडितराजः कुरुते टोका काध्य-प्रकाशस्य ॥२॥ इयताऽपि बुद्धिविभवेन मोहतो यामुष्य मावशतवर्णनोद्यमः। अपि सत्सु सत्सु गुरणभावगौरवाववधेहि वारिण करवाणि साहसम् ॥ ३ ॥ बलिशादपि वक्रदः कुलिशादपि कठिनकर्माणः । गरलादपि मम्ममिदो ये केचन तान्नमस्कुर्मः ॥४॥ हरमौलिगलितगङ्गावोचिविचित्राशयाः सुधियः । मत्कृतिमतिदीर्घकृपापातसुधारसेन सिञ्चन्तु ॥५॥ इत्यादि । और अन्त में उल्लासमुपसंहरति तदेत इति । इतीति ग्रन्थसमाप्ती॥ इति महामहोपाध्याय-श्रीमत्पण्डितराजविरचितकाग्यप्रकाशटीकायां दशमोल्लासः ॥ यह टीका 'मिथिला महाराज संस्कृत पुस्तकालय' में है। इसका समय ई० सत्रहवीं शती से कुछ पूर्व माना गया है। १. न्यायशास्त्र के प्रसिद्ध टीकाग्रन्थ निर्मातामों में गदाधर भट्ट के नाम से विख्यात होते हुए भी इनकी इस टीका का अधिक परिचय व्याप्त नहीं हुआ, यह पाश्चर्य ही है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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