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________________ चतुर्थ-परिशिष्ट साहित्य-कलारत्न, मुनि श्री यशोविजयजी महाराज के साहित्य एवं कला-लक्षी कार्यों की सूची [पू० मुनि श्री यशोविजयजी महाराज (इस ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक तथा संयोजक) ने श्रुतसाहित्य तथा जैनकला के क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सेवा की है। हिन्दी-साहित्य का पाठक-वर्ग भी पापकी कृतियों से परिचित हो, इस दृष्टि से यहाँ निम्नलिखित सूची प्रस्तुत की जा रही है। -सम्पादक) (१) स्वरचित एवं सम्पादित कृतियाँ १-'सुयश जिन स्तवनाबली (सं० १९६१) २-चन्द्रसूर्यमण्डल कणिका निरूपण (सं० १९९२) ३-बृहत्संग्रहणी (संग्रहणीरत्न) चित्रावली (६५ चित्र) (सं० १९६८) ४-पांच परिशिष्ट (सं० २०००) ५-भगवान् श्रीमहावीर के १५ चित्रों का परिचय, स्वयं मुनिजी के हाथों से चित्रित (सं० २०१५) ६ उपाध्यायजी महाराज द्वारा स्वहस्तलिखित एवं अन्य प्रतियों के प्राद्य तथा अन्तिम पृष्ठों की ५० प्रतिकृतियों का सम्पुट (प्रालबम्-चित्राधार) (सं० २०१७) ७-पागमरत्नपिस्तालीशी (गुजराती पद्य) (सं० २०२३) ८-तीर्थकर भगवान् श्रीमहावीर [ग्रन्थ के ३५ चित्रों का तीन भाषाओं में परिचय, १२ परिशिष्ट तथा १०५ प्रतीक एवं ४० रेखा पट्टिकाओं का परिचय] (सं० २०२८) . (२) अनूदित कृतियां १-बृहत्संग्रहणी सूत्र, यन्त्र, कोष्ठक तथा ६५ रंग-बिरंगे स्वनिर्मित चित्रों से युक्त (सं० १९६५) - २-बृहत्संग्रहणो सूत्रनी गाथाओ, गाथार्थ सहित (सं० १९६५)। ३-सुजसवेली भास, महत्त्वपूर्ण टिप्पणी के साथ (सं० २००६) (३) संशोधित तथा सम्पादित कृतियाँ १-नव्वाणु यात्रानी विधि (सं० २०००) २-आत्म-कल्याण माला (चैत्यवन्दन, थोय, सज्झाय, ढालियां आदि का विपुल संग्रह (प्रा. २. सं०.२००७) ३-सज्झायो तथा ढालियाँ (सं० २००७) ४-श्रीपौषध विधि (आ. ४, सं० २००८) १. इस कृति की अब तक आठ आवृत्तियां छप चुकी हैं। आठवीं प्रावृत्ति वि. सं. २००० में छपी थी। २. इसमें से नौ गुजराती और एक हिन्दी स्तवनं 'मोहन-माला' में दिये हैं। इसके अतिरिक्त इसमें मुनिजी द्वारा रचित गहुँली को भी स्थान दिया गया है। ३. ये परिशिष्ट बृहत्संग्रहणी सानुवाद प्रकाशित हुई है उससे सम्बन्धित हैं।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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