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________________ तृतीय उल्लास (अर्थव्यञ्जकता निरूपणात्मक) उल्लास - सङ्गति, अर्थ के भेद 'अर्थाः प्रोक्ताः पुरा तेषाम्' की व्याख्या पर प्रदीपकार तथा स्वयं का मत प्रार्थी व्यञ्जना के भेद, वक्तृवोद्धव्यकाकूनाम्' इत्यादि की प्राचीन सम्मत एवं स्वमतानुसारी व्याख्या 'वाक्यवाच्यान्य सन्निधिः' इत्यादि की व्याख्या तथा अन्य विवेचन १- वक्ता के वैशिष्ट्य में व्यञ्जना का उदाहरण 'अइ पिहुल' इत्यादि २. बोद्धव्य के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण ''ि इत्यादि तथा त्रिविध प्रयों के व्यञ्जकत्व की उद्भावना १ काकु के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण 'तथाभूतां दृष्ट्वा इत्यादि 'न च वाच्यसिद्धपङ्गमत्र काकुः' इत्यादि पक्ति का तात्पर्य 'केचित्' शद्ध से सूचित मत और उसका खण्डन, मधुमतीकार का मत 'अपरे तु' शब्द से सूचित मत, सुबुद्धिमिश्र का मत 'इतरे तु' शब्द से सूचित मत, प्रदीपकार का मत एवं स्वयं टीकाकार का मत लक्ष्यार्थ और व्ययार्थ की व्यञ्जकता का उदाहरण ४- वाक्य वैशिष्ट्य में व्यञ्जना का उदाहरण लक्ष्य तथा व्यङ्गयार्थों की व्यञ्जकता ५- बाध्य वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण लक्ष्यादि अर्थों की व्यञ्जकता का प्रदर्शन , ६ - अन्यसन्निधि के वैशिष्ट्य में व्यञ्जना का उदाहरण, लक्ष्यार्थ और व्यङ्ग्यार्थ में भी व्यञ्जना की उद्भावना ७- प्रस्ताव के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण देश के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण १-काल के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण, लक्ष्यार्थ और व्यङ्गधार्थ की व्यञ्जकता १०- चेष्टा के वैशिष्टय में व्यञ्जना का उदाहरण तथा स्वमतानुसारी व्याख्या उपर्युक्त दस भेदों के पृथक पृथक उदाहरण देने के कारण तथा मतान्तर 'वक्त्रादीनां मिथः' की व्याख्या द्विकादिभेद के उदाहरण का दिग्दर्शन और उदाहरण 'श्वरत्र' पर प्रश्नोत्तर प्रार्थी व्यञ्जना में शब्द की सहकारिता का प्रतिपादन आर्थी व्यञ्जना के नामकरण का रहस्य, मधुमतीकार तथा परमानन्द प्रभृति आचार्यों की विविध व्याख्या और प्रस्तुत टीकाकार का स्वमत आर्थी व्यञ्जना में शब्द के तथा शाब्दी में अर्थ के सहकारी व्यञ्जकत्व को स्वीकृति मौर अधम काव्यत्व की व्यावृत्ति १४७ १४७ ૪ १४६ १५० १५१ १५२ १५३ १५४ १५५ १५६ १५१ १६० १६१ १६२ १६३ १६४ १६६ १६७ १६८ १७० १७० १७१ १७१ १७२ १७३ परिशिष्ट १- काव्य प्रकाश के द्वितीय और तृतीय उल्लास के सूत्रों की अकारादि क्रम से सूची १७५ २- काव्यप्रकाश के द्वितीय और तृतीय उल्लास के मूल, टीका, धनुवाद एवं टिप्पणी में उदाहृत पदों की धकारादि क्रम से सूची १७६ ३- श्रीमद् यशोविजयजी महाराज ( टीकाकार) द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची १७७ ४-मुनि श्री यशोविजयजी महाराज (प्रधान संपादक) द्वारा रचित ग्रन्थ एवं अन्य कृतिकलाप की सूची १८१ - ०:
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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