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________________ न्यायविशारद - न्यायाचार्य -महोपाध्याय - श्रीमद्यशोविजयकृत- टीका- सहितः काव्यप्रकाशः द्वितीय उल्लासः [ काव्यगत - शब्दार्थ-स्वरूपनिरूपणात्मकः ] क्रमेण शब्दार्थयोः स्वरूपमाह मूलसूत्रम् - [५] स्याद्वाचको लाक्षणिकः शब्दोऽत्र व्यञ्जक स्त्रिधा । न्यायविशारद - न्यायाचार्य - महोपाध्याय - श्रीमद्यशोविजयकृता टीका -X अथ लक्षणस्थ पदार्थेषु वक्तव्येषु शब्दार्थयोः प्राधान्यात् तल्लक्षणनिरूपणाय तत्स्वरूपं निरूप्यत इत्याह ' क्रमेणे' ति -- लक्षणे प्रथमं शब्दस्योपादानाद् आदौ शब्दस्य ततोऽर्थस्येति क्रमेणेत्यर्थः । अथ लक्षणायाः शक्त्यधीनतया व्यञ्जनायाश्च तदुभय-मूलत्वेन वाचकादिक्रमेणो द्दिशति - न्यायविशारद, न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज द्वारा रचित टीका का हिन्दी अनुवाद अवसर- संगति :- प्रथम उल्लास में मम्मट ने "तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलङ्कृती पुनः क्वापि " इस 'काव्यलक्षण में शब्द और अर्थ दोनों की समष्टि को काव्य कहा है। काव्य के पूर्वनिर्दिष्ट लक्षण को समझने के लिए शब्द और अर्थ के स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है । इस लिए ग्रन्थकार ने इस उल्लास में शब्द और अर्थ के स्वरूप का परिचय दिया है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ग्रन्थकार ने इस द्वितीय उल्लास का नाम "शब्दार्थ- स्वरूप निर्णय " रखा है। उन्होंने शब्द के वाचक, लक्षक और व्यञ्जक तीन भेद माने हैं और अर्थ के भी वाच्य, लक्ष्य और व्यङ्गय तीन भेद स्वीकार किये हैं । इन तीन प्रकार के शब्दों से तीन प्रकार के अर्थों की प्रतीति के लिए शब्दों की अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जना नाम की तीन प्रकार की वृत्तियाँ भी मानी हैं। इस उल्लास में ग्रन्थकार तीन प्रकार के शब्द, तीन प्रकार के अर्थ और तीन प्रकार की शब्द-वृत्तियों का निरूपण करेंगे । टीका :- यद्यपि काव्य के लक्षण में आये हुए (१) 'अदोषों' (२) 'शब्दार्थों' (३) 'सगुणी' (४) 'अनलङ्कृती' तथा (५) पुनः क्वापि' इन पाँचों पदार्थों का वर्णन क्रमश: करना चाहिए था तथापि उन सभी तथाकथित पदार्थों में प्रधान होने के कारण ( अवसर प्राप्त ) शब्दार्थ के लक्षण-निरूपण के लिए (पहले) उनके स्वरूप का निरूपण करते हैं । काव्य लक्षण में (उल्लिखित पदार्थों में शब्दार्थ प्रधान है; इसलिए शब्दार्थ के स्वरूप के निरूपण के समय ) शब्द का प्रथम उल्लेख होने से पहले शब्द का और उसके बाद अर्थ का स्वरूप बताया जायगा । इसी अभिप्राय से यहाँ 'क्रमेण' पद दिया गया है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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