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________________ इस प्रकार किये गये स्मरणों में भी एक स्थान पर खण्डन के समय केवल 'परमानन्दः', मण्डन के समय 'परमानन्द चक्रवतिनः' और अन्यत्र तीन स्थलों पर 'परमानन्दप्रभृतयः' लिखकर मौचित्य का निर्वाह किया है। चौथे टीकाकार यशोधर उपाध्याय हैं। इनका स्मरण क्रमशः 'एवमादो च कार्यकारणभावादिः' इत्यादि वृत्ति (पृ. ८६) के प्रसंग में इनके द्वारा दिये गये अभिमत के उल्लेख तथा वहीं आगे (पृ० ६२) में व्यञ्जना मानने के लिये उपस्थापित मत में दर्शनीय है। पांचवें टीकाकार 'प्रदीपकृत्' के रूप में उल्लिखित हैं। प्रदीपकृत् से यहाँ तात्पर्य है 'काव्य-प्रदीप' टीकाकार म०म०गोविन्द ठक्कुर । ये टीकाकार अच्छे नैयायिक थे अत: इनके प्रति पू० उपाध्यायजी का झुकाव भी अधिक रहा है । प्रस्तुत टीका में इनका नौ बार स्मरण हुआ है। सर्वप्रथम 'तात्पर्यार्थोऽपि केषुचित्' के अर्थ-प्रसंग में इनका अभिमत दिया है । (पृ. १२) इसके अतिरिक्त क्रमश: 'साक्षादित्यभिधानक्रियान्वितं' इत्यादि से 'साक्षात् सङकेतितं (सू० ६) की वृत्ति के प्रसंग में (पृ० २८), 'गङ्गासम्बन्धमात्र.' इत्यादि वृत्ति के सम्बन्ध में (पृ० ७७), 'लक्षरणा तेन षड्विधा' के व्याख्यान में (पृ. ६७), 'न च शब्दः स्खलद्गतिः' (सू० २६) के तात्पर्य प्रकाशन में, 'मभिधामूला' व्यञ्जना के प्रसंग में 'सन्निधि' का लक्षण प्रस्तुत करते हुए (पृ० १३३), 'न काव्ये' इस प्रतीक के आगे 'बाहुल्येन' पद का शेष मानने के बारे में (पृ. १३६), 'पर्थाः प्रोक्ताः पुरा तेषाम्' (सू० ३५) की व्याख्या में और 'काकु व्यङ्ग्य से वाच्य की सिद्धि' के अवसर पर इनकी टीका के अंश देकर कहीं स्वकीय विचारों की पुष्टि और कहीं अन्य प्राचार्यों द्वारा की गई मालोचना के उपस्थान में 'प्रदीपकृतः' पद से उद्धृत किया है। ___ छठे टीकाकार 'मधुमतीकार' श्री रविटक्कुर सत्रहवीं शती के प्रारम्भिक चरण में हुए हैं। इनका श्री उपाध्यायजी ने पांच स्थलों पर उल्लेख किया है। सर्वप्रथम 'न वा रूढिरियम्' की व्याख्या का उपस्थापन करके इनका अभिमत दिया है (पृ०६७)। उपचार की व्याख्या में मधुमतीकार ने मम्मट की कारिका का जिस प्रकार का व्याख्यान किया है उसे प्रस्तुत कर उसकी समीचीनता पर इन्होंने अपना मत दिया है (पृ०७९-८०)। ज्ञानस्य विषयो झन्थः (सू० २६) की कारिका-'प्रत्यक्षादेन लादिविषयः' में प्रयुक्त प्रत्यक्ष शब्द का अर्थ मधुमतीकार की सम्मति में 'इन्द्रिय बोधक' है' यह व्यक्त करने में (पृ० ११९) काव्यवैशिष्ट्य में, व्यञ्जना के उदाहरण 'तथाभूतां दृष्ट्वा' के प्रसंग में तथा तृतीय उल्लास के अन्त में प्रार्थीव्यंजना में शब्द की सहकारिता का प्रतिपादन करते हुए भी इनका स्मरण हया है। (पृ० १५५ तथा १७२)। ___ इन छह टीकाकारों के प्रतिरिक्त दूसरे उल्लास के अन्त में 'नसिंहमनीषायाः' इतना लिखा हुआ है किन्तु पाण्डुलिपि में इसके आगे का अंश खण्डित है, अतः यह नहीं कहा जा सकता कि म०म० नरसिंह टक्कुर के प्रति इनके क्या विचार थे? अन्य आचार्य एवं कृतियों के उल्लेख तुलना, वैचारिक पुष्टि एवं स्वमत प्रतिपादन के लिये प्रत्येक टीकाकार अपने से पूर्ववर्ती प्राचार्यों एवं उनके ग्रन्थों को अपनी टीका में उद्धृत करता है। इसी के अनुसार उपाध्यायजी महाराज ने भी इन दो उल्लासों की टीका में निम्नलिखित प्राचार्य एवं ग्रन्थादि के मत, व्याख्यांश अथवा उनके अभिमतों पर स्वयं के विचार दिये हैं
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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