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________________ १०६ का उल्लेख व्हलर की सूची में उद्धरण क्रम संख्या १०४६ पर हुआ है। [ ५५ ] सुधानिधि-तिरुवेङ्क: [ ५६ ] सुबोधिनी-दामोदर कै० के० में इसका उल्लेख है। [ ५७ ] सुबोधिनी (सुखबोधिनी)- वेङ्कटाचल सूरि __इस टीका का उल्लेख औफ्रक्ट i, १०२ ए० में तथा हरप्रसाद शास्त्री ने रायल एशियाटिक सोसायटी बंगाल की पाण्डलिपि के कैटलॉग भाग ५ में संख्या ४८३७/८७३६ पृ० ४१५ पर किया है । रायल एशियाटिक सोसायटी भाग ६, में ए०४८३७ पर भी इनका उल्लेख है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य टीकामों अथवा टीकाकारों के नाम भी विद्वानों में चचित हैं किन्तु उनका कोई वास्तविक आधार नहीं मिलने से विशेष विस्तार नहीं किया है। काव्यप्रकाश को अन्य भाषा में प्रणीत टीकाएं तथा अनुवाद काव्यप्रकाश पर लिखा हुमा टीका-साहित्य पर्याप्त अधिक होते हुए भी विद्वानों ने उसके मनन और मन्थन की प्रवृत्ति से संन्यास नहीं लिया, अपितु "इस महान् ग्रन्थ के अास्वाद से अन्य भाषाभाषी समुदाय भी वञ्चित न रहे" इस प्रधान लक्ष्य को ध्यान में रखकर अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, गुजराती और कन्नड़ भाषाओं में भी अनुवाद किये गये जो कि न केवल शाब्दिक अनुवाद ही हैं अपितु भाष्य, समालोचना और टीका की प्रक्रिया को भी अपने में प्रावजित किये [ १. अंग्रेजी अनुवाद ] विश्वविद्यालयों की उच्च परीक्षाओं में 'काव्यप्रकाश' का पाठ्यग्रन्थ के रूप में अध्यापन प्रारम्भ हो जाने पर अंग्रेजी भाषा के माध्यम से काव्य प्रकाश को समझने-समझाने की आवश्यकता बढ़ गई। फलस्वरूप कुछ महाविद्यालयों के प्राचार्यों ने इस दिशा में प्रयास किया और कुछ नोट्स-जिनमें परीक्षा में निर्धारित अंशों पर टिप्पणी, स्पष्टीकरण और काव्यशास्त्रीय तत्त्वों का पूर्वापर निर्देशन करते हुए ग्रन्थांश समझाने का लक्ष्य था-लिखे गये। ये ग्रन्थ किसी प्राचीन टीका के साथ अथवा ग्रन्थ के अन्त में टिप्पणी के साथ प्रकाशित हुए। दूसरी और ऐसे ही प्रकाश्य ग्रन्थ प्रारम्भ में अंग्रेजी में लिखित विस्तृत भूमिका से संयुक्त कर प्रकाशित किये गए। जब कि कुछ विद्वानों ने स्वतन्त्र व्याख्यानरूप से पूरे काव्यप्रकाश का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत किया । ऐसे ग्रन्थकारों का परिचय इस प्रकार है - [१] ट्रीटाइज आफ हटोरिक्स'- म० म० सर गङ्गानाथ झा (१६वीं शती) काव्यप्रकाश का यह सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद है । इसमें डा० झा ने एक अधिकृत विद्वान होने के नाते अनेक वैदृष्य-पूर्ण विचारों के द्वारा यत्र-तत्र प्राचार्य मम्मट के अभिप्रायों को मार्मिक ढंग से प्रौढभाषा में अभिव्यक्त किया है। कुछ नवीन टीकाओं का उल्लेख होने से यह भी कहा जा सकता है कि इसमें न केवल स्वयं के चिन्तन का ही सार समाविष्ट है अपितु अन्य पूर्ववर्ती टीकाकारों के विचारों का भी प्रादर हमा है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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