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________________ काव्य-प्रकाश के अल्प-परिचित तथा अपरिचित टीकाकार उपर्युक्त टीकाकारों के अतिरिक्त काव्यप्रकाश के ऐसे भी बहुत से टीकाकार हैं जिनके देश, काल अथवा टीकानाम आदि पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होते हैं। इन में कुछ अल्प-परिचित हैं जिनके टीकाकार के रूप में संकेत यत्र तत्र अन्यों से प्राप्त होते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जिनकी टीका के नाम ही प्राप्त हैं किन्तु लेखक के नाम नहीं। इस प्रकार के उल्लिखित टीकाकार तथा टीकाओं के नाम हम यहाँ अकारादि क्रम से प्रस्तुत कर रहे हैं[१] अर्थनिर्णय - इस टीका का उल्लेख अनी (Ani) पब्लिक/पण्डित लाइब्रेरी, पो० बेनी बाजार, सिलहट (आसाम) की 'हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची' में है, ऐसा 'केटलागस कैटलागरम्' में अंकित है। जैसलमेर (राज.) से इसके मुद्रित होने का भी संकेत है। [ २ ] अवचूरी-टिप्पणी- राघव (समय अज्ञात) यह अवचूरि अत्यन्त संक्षिप्त टिप्पणी मात्र है । इसमें न तो किसी टीकाकार का नामोल्लेख है और न ही अपने विषय में कुछ लिखा है। केवल पञ्चम उल्लास के अन्त में "इति पञ्चमोल्लासमे राघवेनावचूरितः" इतना ही उल्लेख है । यह अवचूरि भी सम्पूर्ण न होकर केवल सप्तम उल्लास के अर्धभाग तक ही है। कई विद्वानों ने राघव को सुरि, प्राचार्य और जन भी लिखा है पर यह संशयपूर्ण ही है। झलकीकरजी ने अपनी काव्यप्रकाश की भूमिका के पृ० ३६ पर इसका उल्लेख किया है । इसकी पाण्डुलिपि जैसलमेर सूची पृ० ३४ पर अङ्कित है। [३] प्रवचूरि- (?) ...... यह अवचूरि उपयुक्त अवचूरि से भिन्न है। इसका लेखक कौन था ? यह ज्ञात नहीं हो पाया है । इसके बारे में कविशेखर श्री बद्रीनाथ झा ने म०म० गोकुलनाथोपाध्याय कृत काव्यप्रकाश की 'विवरण' टीकावाले. ग्रन्थ को भूमिका पृ० १४ में लिखा है । उनके मत में यह भी किसी जैन प्राचार्य को लघुटीका है। [ ४ ] मानन्दवधिनी-हचिमिश्र भीमसेन दीक्षित ने काव्यप्रकाश के एक टीकाकार के रूप में इसका उल्लेख 'चिमिश्र' के नाम से किया है। यह रुचिकर मिश्र से भिन्न कोई टीकाकार है। [५] पालोक- प्रज्ञात नरसिंहमनीषा' में नरसिंह ठक्कर ने इस टीका का उल्लेख किया है। इसके मामगत साम्य के माधार पर कछ लोगों की कल्पना है कि इस टीका के रचयिता पक्षधर मिश्र ही हैं, क्योंकि उन्होंने 'न्यायचिन्तामणि' पर जिस प्रकार 'पालोक' टीका लिखी है उसी प्रकार 'काव्यप्रकाश' पर भी यह 'मालोक' टीका लिखी होगी। यह अभिमत कविशेखर श्री बद्रीनाथ झा का है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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