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________________ ११ इसके आधार पर ये (महादेव तथा वेणी के पुत्र एवं नागोजी भट्ट के शिष्य मैथिल वैयाकरण वैद्यनाथ से भिन्न) तत्सत् वंशीय विट्ठलभट्ट के पौत्र तथा श्रीरामभट्ट (रामबुध अथवा रामचन्द्र) के पुत्र थे। भीमसेन और नागेश भट्ट ने इनका उल्लेख किया है। इनके द्वारा सूचित समय के अनुसार उक्त चन्द्रिका का रचना काल सन् १६८३ ई है। इन्होंने काव्यप्रकाश पर गोविन्द ठक्कुर को टीका 'काव्यप्रदीप' पर 'प्रभा' टीका तथा कुवलयानन्द पर पलडारचन्द्रिका' टीका भी लिखी है । ये नैयायिक थे। 'तिष्ठेत् कोपवशात्' इत्यादि ३१९वें उदाहरण में 'स्वयि' नयर्थी को कियार्थोपपवस्य' इत्यादि सूत्र से 'कर्मणि चतुर्थी' ऐसा न कहकर 'तुमर्थाच्च भाववचनात' इस सत्र से चतुर्थी कही है। 'उदाहरण चन्द्रिका' के उद्धरण पीटर्सन की रिपोर्ट भा० २, ए, १०८ में, Scc. vii, ५४ में तथा 10C. iii, ११५१९४३ में दिये हैं। [ ५४ ] टीका-विजयानन्द ( सन् १६८३ ई० पाण्डुलिपि की तिथि ) इस टीका की पाण्डुलिपि 'डेक्कन कालेज पूना' के कंटलॉग में पृ० ४४ पर दिए गए संकेत के अनुसार प्राप्त होती है । पाण्डुलिपि में दी गई तिथि १६८३ ई० है । अतः यह इस समय से कुछ पूर्व निर्मित हुई होगी। [ ५५ ] प्रभा (प्रटीका)- तत्सत् वैद्यनाथ ( १६८४ ई० रचना प्रारम्भकाल ) तत्सत वैद्यनाथ ने ही यह प्रटीका गोविन्द ठक्कुर की काव्यप्रदीप' नामक टीका पर लिखी है । इसकी रचना इन्होंने 'उदाहरणचन्द्रिका' की रचना के बाद ही की है। इसका प्रमाण हमें इस 'प्रभा' के प्रथम उल्लास में स्वयं वैद्यनाथ ने 'तददोषौ शब्दार्थों' इस सूत्र के प्रसङ्ग में लिखा है कि-"उदाहरणश्लोकार्थस्तु विस्तरेणास्मत्कृतोदाहरणचन्द्रिकायां द्रष्टव्यः" इति से प्राप्त है। इन्होंने प्रभा में मूलभूत 'प्रदीप' के अनुसार नैयायिक मत से ही व्याख्यान किया है. जो कि उद्योतकार के समान है वैयाकरण मत के अनुसार नहीं। इस आधार पर इनका नैयायिक होना स्पष्ट है। प्रस्तुत 'प्रभा' के अन्त में लिखित-'इति श्रीमत्सकलशास्त्रधुरन्धरतत्सदुपास्य-श्रीराममट्टसनुवैधनाथकृतायां काव्यप्रदीप-व्याख्यायां प्रमाख्यायां दशम उल्लासः।" यह पुष्पिका भी उदाहरणचन्द्रिका की पुष्पिका से साम्य रखती है। . 'इस प्रटीका का प्रकाशन प्रदीप' के साथ श्रीदुर्गाप्रसाद तथा के० पी० परब द्वारा, निर्णय सागर प्रेस-बम्बई से १८६१, १९१२ ई० में हुआ है। बम्बई से ही १६३३ और १९४१ ई० में श्री एस० एस० सुखटणकर के सम्पाद में भी प्रकाशन हुआ है। [ ५६ ] सुमनोमनोहरा- गोपीनाथ ( १७वीं शती ई० का अन्तिम भाग र० का० ) ये 'साहित्यदर्पण' की 'प्रभा' टीका तथा 'रघुवंत' के टीकाकार श्री गोपीनाथ 'कविराज' के नाम से (अाधुनिक नहीं) प्रसिद्धि प्राप्त थे। प्रोफेक्ट भाग १, पृ० १.१ बी० मद्रास Trm C.७१२ पर तथा प्रौफेक्ट ई० भा० १५० १६२ बी० पर भी इनका उल्लेख है। रघुवंश की टीका इन्होंने १६७७ ई० में लिखी थी, इसी के आधार पर यह समय माना गया है। १. इसकी एक पाण्डुलिपि श्री लालबहादुरशास्त्रीय केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली के अनुसन्धान विभाग में भी है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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