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________________ (७८) योगचिन्तामणिः। [चूर्णाधिकारः-- गोक्षुरकः क्षुरकः शतमूली वानरिनागबलाऽतिबला च । चूर्णमिदं पयसा निशि पेयं यस्य गृहे प्रमदाशतमस्ति ॥ ४॥ गोखरू, तालमखाने, शतावरी, कौंचके बीज, गंगेरनकी छाल, खग्टो इन सबका चूर्ण रात्रिको दूधके संग उस मनुष्यको पीना चाहिये जिसके घरमें १०० स्त्री होवें ॥ ४ ॥ प्रमेहमें एलादिचूर्ण ४ । एलाश्मभेदकशिलाजतपिप्पलीनां चूर्णानि तण्डुलजलैलुलितानि पीत्वा । यद्वा गुडेन सहितान्य- . वलिह्य मासमासन्नमृत्युरपि जीवति मूत्रकृच्छी ॥१॥ ४-छोटी इलायची. पाषाणभेद, शिलाजीत, पीपल इनका चूर्ण सांठी चांवलोंके पानीके साथ महीनेभर पीवे अथवा मुड डालकर अवलेह सेवन करे तो निकट मृत्युवाला भी मूत्रकृच्छ्री जीवे ॥१॥ चातुर्जातकचूर्ण । चातुर्जाततुगा द्विजीरकपना तालीमसाराधसा वृक्षाग्लं कपिकच्छुपटककटुवर्याम्लद्विदीप्या च षट्। चूर्णस्तुल्यसितो बलाग्निरुचिकृत्तत्प्लीहमूलानिल. श्वासार्श कसनव्यथाज्वरवमीहत्कण्ठजिह्वातिजित् । .. चातुर्जात, वंशलोचन, दोनों जीरे, धनियां, तालीसपत्र, अनारदाना इनको दश दश कर्ष लेवे । तंतडीक, कैथ, षटकटु (पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, मिरच) अमलवेत, अजमोद, अजमायन इनको छः कर्ष लेवे और सबकी बराबर मिश्री मिलावे । Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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