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________________ द्वितीयः ] भाषाटीकासहितः । (७३) तर्पणमग्रिदीपनं बलप्रदं वृष्यतमं त्रिदोषनुत् ॥ २ ॥ अशविबध्धं तमकं गलग्रहं सकासहिक्कारुचियक्ष्मपीनसम् । ग्रहण्यतीसारमथासृजःक्षयं प्रमेहगुदमाश्च निर्हति सत्वरम् ॥ ३ ॥ लौंग, कंकोल, खस, सफेद चन्दन, तगर, नीलकमल, कालाजीरा, छोटी इलायची, काला अगर, नागकेशर, पीपल, सोंठ, छड, नेत्रवाला, कपूर, जायफल, वंशलोचन ये सब औषधि बराबर लेवे, सबकी बराबर मिश्री मिलावे | यह चूर्ण रुधिरकर्त्ता, इंद्रियों की पुष्टि करे, afrat दीप्त करे, बल करे, वृष्य है, त्रिदोषको हरे | बवासीर, अफारा, तमकश्वास, गलग्रह, खांसी, हिचकी, अरुचि, यक्ष्मा, पीनस, संग्रहणी, अतीसार, रुधिरके विकार, क्षय, प्रमेह और गोला इन सबको शीघ्र नाश करता है ॥ १-३ ॥ बृहलवङ्गादिचूर्ण | लवङ्गमेला तजपत्रजोत्पलं शीरमांसी तगरं सवालकम् । कङ्गोलकृष्णागरुनागकेशरं जातीफलं चन्दनजातिपत्रिका ॥ १ ॥ व्यजाजिका त्र्यूषपुष्करं सटी फलत्रिकं कुष्ठविडंगचित्रकम् । तालीसपत्रं सुरदारु धान्यकं यवानि मिष्टाखदिराम्लवेतसम् ॥ २ ॥ तुगाऽजमोदा घनसारमभ्रकं शृङ्गी वृषाग्रंथिकमग्रिमथकम् । प्रियंगुमुस्तातिविषा शतावरी सत्त्वं गुडूच्यास्त्रिवृतादुगलभा ॥ ३ ॥ समानि सर्वेश्व समा सिता भवेदवृहद्धव Aho ! Shrutgyanam 1277
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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