SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) योगचिन्तामणिः । [ पाकाधिकार: ३ - अडूसेका रस एक प्रस्थ लेवे और आधा प्रस्थ शहद और मिश्री लेवे, दो पल पीपल दो पल घृत लेकर अवलेह बनावे | यह वासावलेह राजपक्ष्माका नाश करे। खांसी श्वास और उरःक्षतको दूर करे ॥ १-२ ॥ भारंगीपाक । शतभागं तु भार्द्वयाश्च दशमूलं ततः परम् । शतं हरीतकीनां च पचेत्तोये चतुर्गुणे ॥ १ ॥ पादशेषे ततस्तस्मिन्नव्यवस्त्रेण गालयेत् । आलोडच च तुलां पूतगुडस्य च क्षिपेत्ततः ॥ २ ॥ पुत्रः पचेत मन्दानौ यावद्यत्वमाप्नुयात् । शीते च मधुनश्चात्र षट् पलानि प्रदापयेत् ||३|| त्रिकुटं त्रिगन्धं च पलैकानि पृथक्पृथक् । कर्षद्वयंयवक्षारं संचूर्ण्य प्रक्षिपेत्ततः ॥ ४ ॥ भक्षयेदभयामेकां लेह्यस्यार्द्धपलं लिहेत् । श्वासं सुदारुणं हन्ति कासं पञ्चविधं तथा ॥ ५ ॥ भारंगी १०० क लेवे १०० टंक दशमूल, १०० टंक हरड इन सबको चौगुगे जलमें डालकर औटावे जब चतुर्थीश जल शेष रहे त उतारकर वस्त्रसे छानकर उसमें १६०० टंक गुड डालकर मन्दाग्निसे औटावे जब अवलेह होजाय तब शीतल कर ९७ टंक शहद डाले और त्रिकुटा, त्रिसुगंध ( तज, पत्रज, इलायची ये सवं औषधि जुदी जुदी कूट पीसकर डाले ८ टंक जवाखार डाले इनमेंसे एक हरड नित्य प्रातः काल खावें और अवलेह टंक ८ पीवे तो घोर श्वास और पांच प्रकारकी खांसीका नाश करे ॥ १-५ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy