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________________ (६०) योगश्चिन्तामणिः । [ पाकाधिकारः ह है । इसके खानेसे रक्तपित्त, क्षयसे जो क्षीण होगया हो, खांसी, कुष्ठ, भ्रम, प्यास इन सब रोगोंको यह आमलापाक नाश करे तथा सुलझटका पडना और सफेद बाल होनेको नाश करे ॥ १-३ ॥ अडूसापाक १ - ३ ॥ वासाक्षुद्राग्निपथ्यामलकफलयुतं पञ्चमूलद्वयं च झिंझिण्याः काथमेनं वसुगुणपयसा पाचितं तुर्यभागः । ग्राह्यस्तस्मिन्गुडमिति ततो निक्षिपेत्पाचयेच्च निक्षेप्या व्योषयुक्ता बलमुशलियुता जातकं साथरी च ॥ १ ॥ शृंगाटकं बिल्वगिरं हरिद्रां खैरीरगुंदं च शतावरीं च । जातीफलं माजुफलं कबाबी आकहिकं मालविकाजगंधाम् ॥ २ ॥ सजातिपत्री फटिका प्रियंगु गुन्दीफलं क्षौद्रयुतं घृतं च । चूर्ण क्षिपेदिक्षुर से सुपक्के लेहो भवे - - द्वासकसंज्ञकोऽयम् || ३ || कासश्वासहरः सदा बलकरः कामाग्निसन्दीपनो लेहोऽयं सरुजामभीष्टफलदः प्रोक्तः स वासाह्वयः ॥ ४ ॥ १- अडूसा, कटेरी, चित्रक, हरड, आंवला ये औषधि दो दो बल लेवे, दशमूल, झिंझणी ( डिडून ) का काढा इन सब औषधियों को आठ गुने पानीमें औटावे जब चौथाई बाकी रहे तब उतारकर गुड मिलावे और उसमें पूर्वोक्त 'औषधियोंको मिलाकर परिपक्व करे । पीछे इन औषधि Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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