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(३२)
योगचिन्तामणि:
[ पाकाधिकारः -
नागरमोथा, चंदन, सोंठ, मिरच, पीपल, जावित्री, चिरौंजी, बेरकी मींगी, तज, इलायची, तालीसपत्र, काला जीरा, सफेद जीरा, सिंघाडेकी गिरी, वंशलोचन, जायफल, लौंग धनियां कर्पूर, दालचीनी ये सब वस्तु बराबर प्रत्येक आठ आठ टंक लेनी, सबको कूट पीस कपड़छान कर रख छोडे । पीछे दक्षिणकी चिकनी सुपारी १२८ टंक, गौका नवीन घृत ६४ टंक, सफेद मिश्री ८०८ टंक लेवे । पीछे सुपारियोंको खरल में डाल कूटकर कपड़छान कर १२४ टंक दूधर्मे डालकर खोवा करे पीछे उस खोवाको घृत मिलाकर भूने, पीछे पूर्वोक्त सुपारीपाककी विधिसे इस पाकको बनाय लेवे ॥ १ ॥
खादेत्प्रातरिदं ज्वरामयहरं दाहं च पित्तं जये - न्नासाऽस्याऽक्षिगुदप्रवाहरुधिरं यद्रोमकूपच्युतम् ॥ २ ॥ यक्ष्मा क्षीणबलं क्षतानिविलयं छर्दिप्रमेहार्शसां रेतोवृद्धिकरं रसायनवरं गर्भप्रदं योषिताम् । मूत्राघातविनाशनं बलकरं वद्धाङ्गपुष्टिपदं पूगीपाकमिदं प्रशस्तदिवसे कार्य च ग्राह्यं बुधैः ॥ ३ ॥ इस सुपारीपाकको प्रातःकाल सेवन करनेसे इतने रोग नष्ट होवेंज्वर, दाह, पित्त के रोग, नेत्ररोग, मुखरोग, नासिकारोग, गुदाकेरोग, रुधिरका गुदाद्वारा गिरना, रोमकूपोंसे रुधिरका निकलना, क्षयसे क्षीणता, उरःक्षत, मंदाग्नि, वमन, प्रमेह, बवासीर । और यह रसायन वीर्यको वढावे स्त्रियोंको गर्भकर्ता है, मूत्राघातको नाश करे, बल करे | वृद्ध देद्दकी पुष्ट करे, इस सुपारी पाकको वैद्य शुभ दिन में बनावे और शुभ दिनमेंही खानेको देवे ॥ २ ॥ ३॥ विजयापाक |
विजयाया रसं शुद्धं तुलामात्रं प्रदापयेत् । क्षीरं गव्यं तुलार्द्ध तु शनैर्मृद्रमिना पचेत् ॥ १ ॥
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