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________________ 'सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (३१३) त्रिफला, पदमाख इनके काढेमें शहद मिलाकर कुरला करनेसे मुखके छाले दूर होवें ॥ ३ ॥ ___अपराजिताधूपः । । कार्पासास्थिमयूरपिच्छबृहती निर्माल्यपिंडीतकत्वग्वंशावषदंशविटतषवचाकेशाहिनिमोचकैः। नागेन्द्रद्विजशृङ्गहिंगुमरिचैस्तुल्यस्तु धूपः कृतः स्वेदोन्मादपिशाचराक्षससुरावेशज्वरघ्नः परः॥१॥ गृहेषु धूपनं दत्तं सर्ववालग्रहालयेत् । पिशाचावाक्षसान्क्षिप्त्वा सर्वज्वरहरं भवेत् ॥२॥ बिनौले, मोर पंख, कटेरी, शिवनिर्माल्यफूल, तगर, तज, वंशसोचन, बिलावकी विष्ठा, धानके तुष, वच, मनुष्यके बाल, काले सर्पकी कांचली, हाथीदांत, गौका सींग, हींग, मिरच इन सबको समान ले और सबके बराबर नीबके पत्ते लेवे, सबको कूट पीसकर धूप बनावे । इस धूपके देनेसे पसीना, उन्माद, पिशाच, गक्षस, देवसाओंका आवेश और ज्वर ये दूर होवे घरमें इसकी धूनी देनेसे सर्व बालग्रह दूर होवें ॥ १-२॥ नृपशिशिरविवर्ण विश्वकन्दपिणी च मलयजगिरिलोहं विग्रहं बिल्वकं च । नखजलघनकेशी तत्प्रमाणं च पूर्व कमलजकृतधूपः सर्वभूतानिहन्ति ॥१॥ कपूर १६ टंक, केशर १२ टंक, कस्तुरी, चन्दन ७ दंफ, अगर १० टंक, शिलाजीत ९ टंक, नख १६ टंक, नागरमोथा नेत्रवाला १६ टंक, कुडाः १६ टंक इन सबको मिलाकर, Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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