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________________ सप्तमः] माषाटीकासहितः। (३११ ) कपडेमें बार बार छाने इस चूर्णको शरीरमें मर्दन करनेसे शीतांग सनिपात दूर होवे ॥ १-३ ॥ कृष्णा सुपर्वविटपी सह नागरेण तिक्ता च दीपकयुता अनुलेपनं स्यात् । चूर्ण प्रशस्तमिति जारयते शरीरे स्वेदं च शीतलतनु वमिदं निहंति॥४॥ पीपल, देवदारु, सोंठ, कुटकी, अजमोद इन सबको पीसकर शरीरमें मालिश करनेसे पसीना आना और देही शीतलता दूर होवे ॥ ४ ॥ . मस्तकटोपबंधनम् । कालोंजी पुष्करं कुष्टमजगन्धा वग विषम् । यवानी खुरसाणं तु सर्व सूक्ष्म प्रपेपयेत् ॥ १ ॥ गोधूमचूर्णरचिते रोटके निहितं तथा । प्रतप्तं मस्तके बद्धं सन्निपातांगशीतहत् ॥२॥ कलौंजी, पोहकरमूल, कूठ, असगंध, वच, प्लुआ, खुरामानी अजमायन इन सबको महान पीसकर गेहूंकी गेट में ख गाम कर मस्तकमें बाँधे ता सनिपातकी शीत नष्ट होवे ॥ १-२ ॥ . नेत्रपिंडी। पिण्डिका कवली प्रोक्ता बद्धा वस्त्रस्य पट्टकैः। नेत्राभिष्यन्दयोग्या सा व्रणेष्वपि निबद्धयते ॥ १॥ एरण्डमूलपत्रत्वनिर्मिता वातनाशिनी। पित्ताभिष्यन्दनाशाय धात्रीपिडी सुखावहा ॥२॥ पिण्डी निम्बदलोद्भूता वातपित्तप्रणाशिनी। त्रिफलापिण्डिका प्रोक्ता नाशिनी श्वेष्मपित्तयो॥३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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