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________________ ( २९६ ) योगचिन्तामणिः । [ मिश्राधिकारः कंपिल्लं कुंकुमं क्वाथं माजूमदनकट्फलम् । मरिचं हिंगुलं जांगी पला चेति समाः समाः ॥ ७ ॥ लोहपात्रे घृते तप्ते यथायोग्यमिमान् क्षिपेत् । प्रक्षिप्य च जलं पश्चान्मथित्वा जलमुत्सृजेत् ॥ ८ ॥ तत्स्थापयेच्छुभे भांडे व्रणादौ विनियोजयेत् । नासूरचन्दनादुष्टव्रणशोधन रोपणम् ॥ ९ ॥ २ -- तपे हुए धीमें राल डाल उतार कर पानी डालकर ऐसा मये कि, उसमें पानी न रहे। इसके लगानेसे फोडा फुनसी दूर होवें । मोम, मस्तंगी, नीलाथोथा, राल, सिन्दूर, सुहागा, गूगल, मुरदा सिंग, बेरकी मींगी, गोंड, गंगके वर्क, कबीला, केशर, माजूफल, मैन - फलका काढा, मिरच, सिंगरफ, बडी हरड, इलायची इन सब चीजों को बराबर लेकर लोह गत्रमें घीको तपाय उसमें यथायोग्य इन औषधियोंको डालकर मये और जलको दूर करे फिर उस मलहमको अच्छे पात्र रख देवे और फोडा, फुनसियोंपर लगाये इनके लगाने से नासूर, चकत्ते, दुष्टव्रण इनका शोधन करे तथा आराम होवे ॥५-९॥ उदगेपरि लेपः । विषं तुत्थं तथा गुञ्जा सिन्दूरं नवसादरम् । नरमूत्रेण संघृष्य कृत्वा रुधिरमोक्षणम् ॥ १ ॥ विपं च सूतं नवमादरं च मयूरतुत्थं कलहंसवल्लीम् । शल्ये च नष्टे शतवर्षपक्के वातारिगद्यं मुनयो वदन्ति२ ॥ तेलिया मीठा, नीलायोथा, चिरमिठी, सिंदूर, नौसादर इनको मनुष्य के मूत्रमें घिसकर रुधिर निकालकर तेलिया मीठा, पारा, नीलाथोथा, नौसादर, हंसपदी इनका नेप Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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