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सप्तमः ]
भाषाटीकासहितः ।
( २७७ )
तिक्तसारं चतुः कर्षमाटरूषं कुलिञ्जनम् ॥ ६ ॥ अजमोदाश्वगन्धा च चव्यं माजूफलं वरी । सारं सूर्ण तेजबलं तालीसं श्यामपूगकम् ॥ ७ ॥ एतेषां कर्षमात्रं च सूक्ष्मचूर्ण तु कारयेत् । मूलभांडे क्षिपेत्सर्व पलमेकं भजेन्नरः ॥ ८ ॥ कासं श्वासं च हृद्रोगं पाण्डुरोगं क्षतं क्षयम् । गुल्मोदरं ग्रहण्यर्शोमूत्रकृच्छ्रं तथाश्मरीम् ॥ ९ ॥ प्रमेहशोफातीसारखातपित्तकफापहः । कूष्माण्डासव इत्येष बलकुन्मलशोधनः ॥ १० ॥
पेठेके पके हुये फल में छेद करे उस छेदमें दो तोले गुड हौले हौले भरे फिर छिलका और बीज अलगकर चिकने बरतन में भर झडबेरीकी ८ पल छालका काढा कर उसमें डाले । कसेला दो पल, धायके फूल दो पल, हाऊचेर १ पल, त्रिफला, काकडासिंगी, भारंगी, पोहकरमूल, मूसली, गोखरू, कंकोल, वंशलोचन, मुलहठी, मोथा, मोचरस, पीपलामूल, अष्टवर्ग, चातुर्जात, वायविडङ्ग, सोंठ, मिरच, पीपल, चीता, केशर, जायफल, अकरकरा, मालतीफल, रक्तचन्दन, दशमूल, कायफल, रेणुका, कचूर, कंद, संभालू अडूसा, कुलिंजन, अजमोद, असगन्ध, चव्य, माजूफल, शतावरी, सार, तेजबल, तालीसपत्र, चिकनी सुपारी इन सबको चार २ टंक लेकर महीन चूर्ण कर एक बरतन में डाल देवें । उसमेंसे एक पल सेवन करनेसे खांसी, श्वास, हृदयरोग, क्षत, क्षयरोग, गांठ, उदररोग, ग्रहणी, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, प्रमेह, सूजन, अतीसार, बात, पित्त, कफ इत्यादिक रोगोंका नाश
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