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________________ (२५४) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकार:तकिया लगाकर क्षणमात्र लेटे । रससे गरमी मालूम हो तो मिश्री संयुक्त लेवे अथवा गिलोय वा वंशलोचनमें लेवे तो अरुचि, संग्रहणी आदि दूर होवें ॥ २-९ ॥ कफकुंजररसः १-२ । रसगन्धः सीपिमासं स्नुह्यकै च पयःपलम् । पलं पलं पञ्चलूणमेकीकृत्य तु चूर्णयेत् ॥ १ ॥ आलोडय चार्कदुग्धेन पूरयेच्छंखमध्यतः । पिप्पली विषकर्वीर चूर्ण कृत्वा प्रलेपयेत् ॥ २ ॥ प्रज्वालयेयाममात्रं सूक्ष्मं चूर्ण तु कारयेत् । कर्पूरनागपत्रैश्च देया मात्राऽद्रगुजया ॥ ३ ॥ श्वासं कासं च हृद्रोगं कर्फ पञ्चविधं तथा । वज्रवद्धन्ति रोगांश्च रसोऽयं कफकुंजरः ॥ ४॥ १-पारा १६ टंक, गंधक १६ टंक, सीपी १६ टंक, थूहरका दूध १ पल, आकका दूध १ पल, पाचों नोन इनको एकत्र कर आकके दूधमें सान शंखमें भरै । पीपल, तेलिया मीठा, कनेर इनको भी शंखमें भर देवे और कारोटी कर एक प्रहर आदि देवे जब ठंढा होजाय तब सबका चूर्ण कर कपूर पानके संग आधी रत्ती दे तो श्वास, खांसी, हृदयरोग, पाँच प्रकारके कफ वज्रके समान कफकुंजर रस रोगरूपी वृक्षोंको जडसे उखाडे ॥ १-४॥ नागं पारदसंयुतं समरिचं सद्वत्सनाभं शुभं देवालीरसभावना मुनिमिता क—रकाकल्लयोः। देयं वल्लमितं महौषधरसैः सन्त्रागवल्लीदलैः श्लेष्मावातविकारजाठरपरे स्यात्सन्निपाते ज्वरे ॥ १॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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