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________________ सप्तम: ] माषाटीकासहितः । ( २५१ ) माक्षिकस्य या भागा भागेकं सैन्धवस्य च । मातुलुंगद्रवैश्वाथ जम्बीरोत्थद्रवैः पचेत् ॥ २ ॥ क्षालयेल्लोहजे पात्रे यावत्पात्रं सलोहितम् । भवेत्ततः सुसिद्धः स्यात्स्वर्णमाक्षिकमृच्छति ॥ ३ ॥ कुलत्थस्य कषायेण घृततैलेन वा पचेत् । तक्रेणऽवाजमूत्रेण म्रियते स्वर्णमाक्षिकम् ॥ ४ ॥ सोनामक्खीको पहले शहद में फिर कुलथीके काटेमें फिर मनुव्यके मूत्रमें घोटकर दोलायंत्र में शुद्ध करे | फिर शहद तीन भाग, सेंधानोंन एक भाग ले बिजौरा तथा जंभीरीके इसमें पावे । उसको लोहेके पात्रमें डालकर जब लाल हो जाय तबas हिलावे तो सोनामक्खी शुद्ध होय । कुलथीके काढे अथवा घृत तेलमें पकावे या मट्ठामें पकावे वा बकरीके मूत्रमें पकावे तौ सोनामक्खी मरे ॥ १-४ ॥ रूपमाक्षिकशोधनम् । कर्कोटीमेष शृंग्युत्थैद्रवैर्जबीरजैर्दिनम् । भावयेदातपे तीव्रे विमला शुद्धयति ध्रुवम् ॥ १ ॥ रूपामाखी ककोडा, मेढासगीका रस, जंभीरीका रस इनमें एक दिन भावना देकर फिर धूपमें सुखावे तो रूपामाखी शुद्ध होवे ॥ १ ॥ मनःशिलाशोधनम् । पत्र्यहमजामूत्रे दोलायन्त्रे मनःशिलाम् । भावयेत्सप्तधा पित्तैरजायाः शुद्धिमृच्छति ॥ १ ॥ मनशिलको बकरी मूत्रविष दोलायंत्र में तीन दिन पकावे, फिर बकरीके पित्तेकी सात भावना देवे तो शुद्ध होवे ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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