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________________ ( ४ ) योगचिन्तामणिः । [ पाकाधिकारः तीन बार नाडीपर हाथको रख रख कर छोड़ छोड़ दे जब अच्छी तरह रोग समझमें आजावे तब उसको कहे ॥ ५॥ वातं पित्तं कफं द्वंद्वं त्रिदोषं सन्निपातकम् । साध्यासाध्यविवेकं च सर्वान्नाडी प्रकाशयेत् ॥ ६॥ वात, पित्त, कफ, द्वंद्वज, त्रिदोष, सन्निपात, साध्य और असाध्य सबको नाडी प्रकाश करती है ॥ ६ ॥ करस्याङ्गुष्टमूले या धमनी जीव साक्षिणी । तचेष्टया सुखं दुःखं ज्ञेयं कायस्य पण्डितैः ॥ ७ ॥ हाथके अँगूठेके नीचे धमनी नाडी जीवकी साक्षी देनेवाली हैं, उसी धमनी नाडीकी चेष्टासे पण्डित देहके दुःख और सुखको जाने ॥ ७ ॥ धत्ते नाडी मरुत्कोपाज्जलौका सर्पयोर्गतिम् । कुलिङ्गकाकमण्डूकगतिं पित्तस्य कोपतः ॥ हंसपारावतगतिं धत्ते श्लेष्मप्रकोपतः ॥ ८ ॥ वातके कोप से नाडी जोक और सर्पकी गति धारण करती है, पित्त कोपसे कुलिंग, कौआ और मेंडक की गति से चलती है, कफके कोपसे नाड़ी हंस, कबूतर की गति से चलती है ॥ ८ ॥ लावतित्तिरवर्तीनां गमनं सन्निपाततः । कदाचिन्मन्दगमना कदाचिद्वे गवाहिनी ॥ द्विदोषकोपतो ज्ञेया हन्ति च स्थानविच्युता ॥ ९ ॥ स्थित्वा स्थित्वा चलति या सा स्मृता प्राणनासिनी। अतिक्षीणा च शीता च जीवितं हन्त्यसंशयम् ॥ १० ॥ सन्निपात कोपसे नाडी लवा, तीतर और बटेरकीसी चाल चलती है, कभी मन्द चले कभी तेज चले ऐसे नाडी द्विदोष के को पकी Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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