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________________ (२०४६), योगचिन्तामणिः। [तैलाधिकारः-- केशर, जावित्री, नख, (नख नामसे प्रसिद्ध सुगंधियुक्त होता है), गोंद, कस्तूरी, कोकेछ, छारछबीला, पतंग, पोहकरमूल, मोथा, रक्तचन्दन, गारीसर, कचूर, कपूर, मञ्जीठ, लाख, मुलहठी, प्रियंगु, सौंफ, शतावर, मूळ, असगन्ध, सोंठ, कमलके शर, हाऊबेर, चीढ, पित्तपापडा, गठिवन, लौंग, कंकोल इन औषधियोंको ८ टंक लेकर और दशमूल १ भाग ले लोहेकी कढाई में काढा घरे, बेर कुलथीका काढा करे. इनको पकत्र कर और खौंट की जडका काढा यथोक्त कर चौगुना तेल डाले. जब परिपक्क हो नावे तब उतार लवे और सुन्दर पात्रमें रख देवे और सुगंधवाली औषधियों को ऊपरसे डाल देवे। इसके मर्दनसे शरीर सुन्दर होवे. स्त्री पुरुष दोनों लगायें तो शरीर शोभायुक्त हो, बहुत दिनका ज्वर, दाह, शं तज्वर, विषमज्वर, मुखशोष, मृगी, कोट आदेको दूर करे, बाँझ स्त्र के पुत्र होय, ८० प्रकारके वातरोग, प्रसूतरोग, बालका मर्मरोग, वीर्यक्षीण, हतवीर्य, खाज, रूखी देह, त्वचाके रोग और त्रुके ऊपर जो रोग होवें उन सबमें यह चंदनादि तेल हितकारक है. यह आत्रेय मुनिने कहा है ॥ १-१४॥ कुष्ठदद्रुविकारे वज्रतैलम् । वज्रीक्षीररविक्षीरे द्रव्यधान्यारचित्रकम् । महिपीविड्भवं द्रावं सर्वांशतिलतैलकम् ॥ १॥ पचेत्तैलावशेषं तु गोमूत्रेऽथ चतुर्गुणम् । तैलावशेष पक्त्वा च तत्तैलं प्रस्थमात्रकम् ॥२॥ गन्धकाग्निशिलातालविडङ्गातिविषाविषम् । तितकोशातकी कुष्ठं वचा मांसी कटुत्रिकम् ॥३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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