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________________ षष्टः ] भाषाटीकासहितः । ((२०१) गौरीसर, श्रीपर्णी, विदारीकंद, सेहुंड, आक, मेढासिंगी, लाल कनेर तथा सफेद कनेर, काकजंघा, ओंगा, प्रसारिणी, त्रिफला यह सब बरावर लेवे और चौगुने पानी में काढा करे काले तिलका तेल काढेके बराबर, एडका तल दूना, सरसोंका तेल तिगुना इन सबको बुद्धिमान वैद्य एकत्र कर पकावे. तदनंतर सोंठ, मिरच, पीपल, असगंध, रास्ना, कूठ, नीं की छाल, देवदारु, इन्द्रयव, जवाखार, सज्जी, पांचोंनोंन, शुद्ध नीलाथोथा, कायफल, पाढ, भारंगी, नवसादर, गंधक, पोहकरमूल, शिलाजीत, कचूर, वच, यह औषधि चार चार टंक जब तेलमात्र शेष रहे तब डाल देवे फिर बत्तीस टंक तेलिया मीठा डाले । यह विषगर्भ तेल संपूर्ण रोगों को दूर करता है । पीठका दरद, भौंहकी पीडा, कुखका दरद कनपटीकी पीडा, संधिपीडा, सूजन, गृध्रसी, माथेकी वायु, सर्वांगफूटन, प्रतानवायु, उदरगाठ, कर्णरोग, सुनवायु, कंपवायु ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, बहरापन, पलित, गंडमाला, अपचीवात, मस्तककंप, तेरह प्रकारका सन्निपात, आदि संपूर्ण बातरोग इस तेल से नाश होते हैं । जैसे वनमें सिंहको देखकर सब मृग भाग जाते हैं उसी प्रकार इस दवा के सेवन से संपूर्ण रोग नाश होते हैं । इसको अच्छा वैद्य संपूर्ण वातरोग में देवे ॥ ९-२० मस्तकरोगे पविन्दु तैलम् । it एरण्डमूलं तगरं शताह्वा जीवंतिरास्ना लवणोत्तमं च । भृंगं विडंगं मधुयष्टिका च महौषधं चेति तिलस्य तैलम् ॥ १ ॥ एतैर्विपक्कैः पयसा च तुल्यं चतुर्गुणे भृंगरसे च सम्यक् । षड् बिन्दवो नासिकयोपयुक्ताः सर्वान्निहन्युः शिरसो Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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