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________________ (१६०) योगचिन्तामणिः। [क्वाथाधिकार: आरग्वधादिपंचक्काथः। आरग्वधं ग्रंथिकतिक्तमुस्ताहरीतिकीभिः क्वथितः कषायः । सामे सशूले कफवातयुक्ते ज्वरे हितो दीपनपाचनश्च ॥ १॥ अमलतास, पीपलामूल, कुटकी, मोथा, हरड इनका काडा थामशूल, कफ वातज्वर इनमें हितकारी तथा दीपन पाचन है ॥१॥ . पंचभद्रकाथः । पर्पटाब्दाऽमृताविश्वकैरातैः साधितं जलम् । पञ्चभद्रमिदं ज्ञेयं वातपित्तज्वरापहम् ॥१॥ पित्तपापडा, मोथा, गिलोय, सोंठ, चिरायता इनका काढा वानपिचज्वरका नाश करता है ॥ १॥ शट्यादिकाथः । शटीपुष्करमूलं च भाङ्गी शृङ्गी दुरालभा। गुडूची नागरा पाठा किरातं कटुरोहिणी ॥ १ ॥ एष शट्यादिकः काथः सर्ववातज्वरापहः । कासादिशोफयुक्तेषु दद्यात्सोपवेषु च ॥ २॥ कचूर, पोहकरमूल, भारंगी, काकडासिंगी, कटेरी, गिलोय, सोंठ, पाढ, चिरायता, कुटकी, यह शट्यादिक्वाथ सम्पूर्ण वातज्वरोंका नाश करता है । खांसी सूजनभी होय तो यही काढा देवै तौ आराम होवे ॥ १ ॥ २ ॥ · बृहच्छट्यादिक्वाथः। शटी पटोलदिनिशोग्रगन्धा वासा किरातं दशमूलधारा । सहाचरी भाङ्गिवरी सशृङ्गीरानेन्द्रबीज Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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