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________________ (१५८) योगचिन्तामणिः। [काथाधिकार:डालकर पीवे तो माथेका दरद, भौंह, कान, शिखा, आधासीसी, रतौंधा आदि पीडा नाश होवे ॥ १ ॥ ___ ज्वरे उपद्रव दश भवन्ति । तन्नामानि । श्वासमूरुिचिच्छदितृषातीसारहृद्ग्रहाः । हिका कासोऽङ्गभंगश्च ज्वरस्योपद्रवा दश ॥ १॥ श्वास, मूर्छा, अरुचि, वमन, प्यास, अतीसार, हृदयग्रह, हिचकी, खांसी, अंगमर्दन ये ज्वरके दश उपद्रव हैं ॥ १ ॥ ज्वरे क्षुद्रादिक्वाथः । क्षुद्रामृतानागरपुष्कराद्वैः कृतः कषायः कफमारुतोत्तरे । सश्वासकासारुचिपाचशूले ज्वरे त्रिदोषप्रभवे प्रशस्यते ॥१॥ कटेरी और गिलोय, सोंठ, पोहकरमूल इन सबको एक एक टंक लेवे और काढा करके पीवे तो कफ, वायु, श्वास, खांसी, अरुचि, पसलियोंका दरद और त्रिदोष ज्वरादि नाश हो ॥ १ ॥ वृद्धक्षुद्रादिक्वाथः १-२ । क्षुद्रानिम्बपटोलचन्दनघनैस्तिक्तामृतापद्मकासावेसणशुण्ठिपुष्करजटाभूनिम्बभाङ्गा सह । बीजं कुष्ठधमासकं कृमिहरं कासं वर्मि कामलां क्वाथश्चाष्टविध ज्वरं कफमरुत्पित्तं सदाहं जयेत् ॥१॥ कटेरी. नींवकी छाल, पटोलपत्र, चन्दन, मोथा, गिलाय, पदमाख, धनियां, सोंठ, पोहकरमूल, चिरायता, भारंगी, इन्द्रजौ, कूठ, धमासा, इनका काढा कर पीनेसे कृमिरोग, खांसी, वमन, कामला, आठ प्रकारके ज्वर, कफ वातपित्त और दाहादि दूर होवें ॥ १॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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