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________________ चतुर्थः] भाषाटीकासहितः। (१५१.) .२-मंजीठ, कुडेकी छाल, गिलोय, मोथा, वच, सोंठ, हलदी, कटेरी, नींबकी छाल, पटोलपत्र, कूठ, कुटकी, भारंगी, वायविडंग, चीता, मूर्वा देवदारु, इंद्रजव, भांगरा, पीपल, त्रायमाण, पाढ, शतावर, खैरसार, त्रिफला, चिरायता, बकायन, विजयसार, अमलतास, निसोथ, बावची, रक्तचन्दन, वरणाकी छाल, कंजुआ, सहोडाकी छाल, बांसा, पित्तपापडा, सारिवा, अतीस, जवासा, नेत्रवाला इनका काढा नित्य पीवे तो संपूर्ण त्वचाके दोष और १८ प्रकारके कोढ दूर हो ॥१-३॥ ___ मंजिष्ठादि चतुःषष्टिक्वाथः। मंजिष्ठा त्रिफला प्रियंगुममृता ब्राह्मी वचा पौष्करं भृङ्गास्यात्रिकटुः किरातकविषानिण्डिकाऽऽरग्वधः । त्रायन्ती खदिरं कटुत्वचवृकी पीताद्वयं रोहिणी तिक्ता पर्पटवासकेन्द्रफलिनीनंताविशालागदम् ॥ १ ॥ एरण्डं पिचुमंदचित्रकवरी भाङ्गी मलेन्द्रं सटी बिल्वं निम्बमजूलपाडलत्रिवृत्तेजस्विनीवालकम् । दंतीमूलपलाशचन्दनयुगं मुण्डीविडंगान्वितैरयोररणीकरंजधवयोः पर्णानि मूलानि च ॥२॥ क्षुद्राबाद्वयदेवदारुजलदाः कहारकं कल्कजमेभिः सिद्ध असौ पटोलसहितैः काथश्चतुःषष्टिकः । अष्टांशेन विपाचयेच्च मति मानुत्कल्प्यमृद्भाजने पीतो हन्ति सपित्तरक्तमखिलं कुष्ठानि चाष्टादश ॥३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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