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________________ तृतीयः ] . भाषाटीकासहितः। (१०९) और खाय तो बिपूचिका, अजीर्ण, मन्दाग्नि और वमन इन सबका नाश करे ॥ २-४॥ उन्मीलनीगुटिका। उन्मीलनी बुद्धिबलेन्द्रियाणां निर्मूलनी वातकफार्दितानाम् । संशोधिनी मूत्रपुरीपयोश्च हरीतकी शुण्ठिगुडप्रयुक्ता ॥ १॥ हरड, सोंठसे गुडकी गोली बुद्धि बढावे, मनुष्यकी इद्रियोंको चैतन्य करे, वात कफादिक रोगोंको निर्मूल करे, मलमूत्रको शुद्ध करती है ॥ १ ॥ गुडचतुष्टयवटिका। आमेषु सगुडां शुण्ठीमजीर्णे गुडपिप्पलीम् । कृच्छ्रे जीरगुडं दद्यादर्शोघ्नं गुडदाडिमम् ॥ १ ॥ आमरोगमें सोंठ मुड, अजीर्णमें गुड पीपल, मूत्रकृच्छ्रोगमें जीरा गुड और बवासीर रोगमें अनारदाना गुडसंयुक्त देना चाहिये ॥ १ ॥ गुडविश्वौषधं पथ्यामागधीदाडिमैः कृता । वटिहन्याद् भक्ष्यमाणा गुल्मार्शोवह्निजान् गदान्॥ गुड, सोंठ, हरड. पीपल, अनारदाना इनकी गोलीको खावे तो गुल्म आदि रोगोंका नाश करे और अग्निको दीपन सूरणादिवटिका। चूर्णीकृताः षोडश सूरणस्य भागास्तदर्दैन च चित्रकस्य । महौषधी द्वौ मरिचस्य चैको गुडेन दुर्नामजयाय पिंडी॥ १ ॥ मरिचमहौषधिचित्रक Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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