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________________ मिश्रितप्रकरणम् ४.. एको निवृत्तावितरः प्रवृत्तौ यात्राविरुद्धं शकुनद्वयं तत् ॥ ग्राह्योनयोर्यों बलवान्भवेद्वा प्रदीप्तशांतादिनिरूपणेन ॥२५॥ दग्धादिमुक्ता दिननाथमुक्ता विवस्वदाप्ता भवति प्रदीप्ता॥ सा धूमितायां सविता प्रयाता शेषा दिगंताः किल पंच शांताः॥२६॥दग्धा दिगैशी ज्वलिता दिगेंद्री धूमान्विता चानलदिक्प्रभाते ॥ प्रत्येकमेवं प्रहराष्टकेन भुक्ते दिशोऽष्टौ सविता क्रमेण ॥ २७॥ ॥ टीका ॥ वेदध्वनिःघंटारवः घंटाशब्दः शंखनिनादः शंखध्वनिः॥२४॥एक इति॥एकः शकुन: निवृत्तौ निवृत्तिनिमित्तं जातः इतरः प्रवृत्तौ प्रवृत्तिनिमित्तमिति यात्राविरुद्धं तच्छकुनद्वयं ज्ञेयमनयोर्मध्ये कश्चिद्राह्यो.नवेत्याकांक्षायामाह॥ग्राह्य इति ॥ अनयोनिवृत्तिप्रवृत्तिशकुनयोर्मध्ये प्रदीप्तशांतादिनिरूपणेनति प्रदीप्ता अग्रे वक्ष्यमाणा दिशा शांतास्तद्विपरीता:दिशः। आदिशब्दाजात्यादिग्रहणमेतेषां निरूपणेन विचारणेन यः शकुन:बलवान् भवेत्स ग्राह्यः॥ २५॥ दग्धेति ॥ दिननाथेन मुक्ता त्यक्ता या दिक सा दग्धा उक्ता। विवस्वता रविणा आप्ता या सा प्रदीप्ता भवति । यो दिशं सविता सूर्य प्रयाता यास्यति वा साधूमिता। शेषाःपंच दिगंता दिशा विभागाः शांताः प्रोक्ता इत्यन्वयः॥ २६ ॥ दग्धेति ॥ प्रभाते सूर्योदये ऐशी ईशस्येयमैशी ऐशानी दिग्दग्धा ज्वलिता दिगेंद्री इंद्रस्येयमैंद्री पूर्वा दिक् । अनलदिक् आमयी ॥भाषा ॥ करवे वाले हैं ॥ २४ ॥ एक इति ॥ एक शकुनतो निवृत्ति निमित्त होय दूसरो प्रवृत्ति निमित्त शकुन होय ये दोनों शकुन यात्रा विरुद्ध जानने योग्य हैं तो इन दोनोनमेंसं कोई ग्रहण करनो या नहीं करनो तापै कहैहैं इन दोनोंमें अगाडी कहेंगे जो प्रदीप्तशांत जाति स्वरा. दिकनको विचारकरकै जो बलवान् होय सो ग्रहण करें ॥ २५ ॥ दग्धेति ॥ सूर्यने जा दिशाकू छोडदीनी वो दिशा दग्धासंज्ञा कहैं हैं और जामें सूर्य प्राप्त होंय वो दिशा 'प्रदीप्ता संज्ञा क हैं और जा दिशाकू सूर्य जायंगे वो दिशा धूमिता संज्ञा कहैहै बाकी पांच दिशा रही तिनकी शांता संज्ञा है ॥ २६ ॥ दग्धेति ॥ जब सूर्योदय होयहै वा समयमें Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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