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________________ मिश्रितप्रकरणम् ४. (४३) जातिस्वरस्थानबलप्रमोदैर्जवेनसत्त्वेन तथाऽऽनुकूल्यात्।। दिकालतिथ्यादिकहंसचारैर्बलाबलं प्राणभृतां परीक्ष्यम् ॥१९॥ ॥ टीका॥ भाषिण्य इति प्रसन्नं मृदु भाषितुं शीलं यासांताः तथा। अतः अस्मात् एतयोः स्त्रीपुरुषयोरन्यन्नपुंसकं भवतीति भावार्थः ॥ १८ ॥ जातीति ॥ प्राणभृता शकुनानां, बलावलं परीक्ष्यं विचारणीयमित्यर्थःकैः जातिस्वरस्थानवलप्रमोदैरिति अत्र जा. तिश्च स्वरश्च स्थानं च बलं च प्रमोदश्च जातिस्वरस्थानबलप्रमोदास्तैः इतरेतरबंदः जात्या यथा वर्णेषु क्षत्रियजातीयापेक्षया क्षत्रियो बलवान् एवमन्यत्रापि।स्वरेण मंद्रमध्यतारभेदेन तत्र मंद्रापेक्षया तारस्वरो निर्बलः शूदजातीयो निर्बल ब्राह्मणो बलवान् वैश्यो निर्बल वैश्यजातीयापेक्षया स्थानेन स्वस्थानापेक्षया परस्थानस्थो निर्बलः बलेन रात्रिबलो दिवा निर्बल दिवाबलो रात्रौ निर्बलः जवेन जवः शीव्रगतिस्तेन यथा मंदगतिनिर्बलः सत्त्वेन पराक्रमेण सर्वेभ्यः शरभो बलीयान् आनुकूल्यादिति शुभेषु कार्येषु शुभः बलीयान् अशुभेषु अशुभः यथाक्रमं तयोस्तत्रानुकूल्यादिकालतिथ्यादिकहंसचारैरिति अत्रापीतरेतरद्वंद्वः । दिक्च कालश्च तिथ्यादिकंच हंसचारश्च दिकालतिथ्यादिकहंसचारैरिति दिशां बलं त्वग्रे वक्ष्यमाणं कालेन रात्रिचारिणां रात्रावेव बलं दिवाचारिणां दिवस एव बलं तिथ्या प्रतिपदादिकया पूर्णरिक्तादिधर्मेण ॥ भाषा। जिनकी होय ऐसे लक्षण जिनमें होंय वे पक्षी स्त्रीसंज्ञक जानने और जैसेही इन दोनों ल.. क्षण करके रहित होय इनमेंसे कोईभी लक्षण जिनमें न होंय वे पक्षी नपुंसक जानने ॥ ॥ १८ ॥ जातीति ॥ प्राणधारी शकुन पक्षिनको बल और अबल विचारनो योग्यहै कायकरके, जातिकरके, जैसे वर्णनमें क्षत्रिय जातिकी अपेक्षा करके ब्राह्मण बलवान् हैं और वैश्य निर्बल है ऐसे ही वैश्यजातिकी अपेक्षा करके शूद्र जाति निर्बल है और क्षत्रियजाति बलवान् है या प्रकार और जगहभी जानना और स्वरकरके मंद्रमध्यतारभेद करके. मंद्र स्वरकी अपेक्षा करके तारस्वर निर्बल है और स्थानकरके अपने स्थानमें स्थित होय सो बलवान्, और पराये स्थानमें स्थित होयं सो निर्बल, और बलकरके रात्रिमें बलवान् है सो दिवसमें निर्बल है, और दिवसमें बलवान् है सो रात्रिमें निर्बल है, और सत्त्वकरके संपूर्ण जीवनतें सरभपक्षी: बलवान् है, और सब निर्बल हैं, और अनुकूलके प्रभावते शुभका Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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