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________________ अर्चनविधिप्रकरणम् ३. ( ३१ ) असृग्वसा चर्चित कृष्णकायां करीन्द्रपंचाननचर्मवस्त्राम् ॥ बिभीतकस्थामंतिभीमरूपां चंडों स्मरेपिगलिकां सभाज्य ॥ ॥ २१ ॥ अधोमुखी घोररवातिरौद्रा ज्वालाकरालं वदनं वहन्ती ॥ स्तनंधयैः सप्तभिरभ्युपेता शिवा शिवादूत्यनुचिन्तनीया ॥ २२ ॥ ॥ टीका ॥ नर्विशिनष्टि नरमुण्डमालामिति नराणां मुंडानि मस्तकानि तान्यवै माला यस्याः सा तथा । पुनः कीदृशीं निर्मासदेहामिति निर्गतं मांसं यस्याः सा तथा । अतिकृशत्वादित्यर्थः । किं कुर्वतीं किं रुधिरं परेषामिति शेषः ॥ २० ॥ पुनः कीदृशीं अमृग्वसाचर्चित कृष्णकायामिति ॥ असृग् रुधिरं वसा नाडी ताभ्यां चर्चितः कृष्णकायो यस्याः सा तथा । पुनः कथंभूतां करीन्द्र पंचाननचर्मवस्त्रामिति करींद्रो हस्तिपुंगवः पंचामनः सिंहः तयोश्चर्म तदेव वस्त्रं यस्याः सा तथा पुनः fravi बिभीतकस्थामिति विभीतके कलिदुमे तिष्ठतीति विभीतकस्था तां । पुनः कीदृशीम् अतिभीमरूपामिति अतिशयेन भीमं भीषणं रूपं यस्याः सा तथा ॥ २१ ॥ युग्मम् ॥ अधोमुखीति ॥ शिवामभ्यच्येति शेषः । शिवादूती अनुचिंतनीयेत्यन्वयः । कीदृशी अधोमुखीति अधः मुखं यस्याः सा । स्वांगाद्वेतीप् ॥ पुनः कीदृशी घोररवेति घोरः भयोत्पादकः रवः शब्दो यस्याः सा । पुनः किं कु ॥ भाषा ॥ स्थित और मनुष्यनके कपाल ते हैं हाथमें जाके और फिर शूल जो त्रिशूल सोहै आयुध जाके और भस्मकरके श्वेत है अंग जाको; तैसे ही फिर उलूक जे घुग्घू ताको है चिह्न जाके, ऐसी और नरमुंडन की है माला जाके और नहीं है मांस जाके और रुधिरकूं पान कररही और रुधिर नाडी इनकरके चर्चित है श्याम देह जाको और करींद्र जो श्रेष्ठ हाथी और पंचानन जो सिंह इनको चर्म सोई है वस्त्र जाके और तैसे ही फिर बिभीतकं जो बहेड़ेका वृक्ष तामें स्थित ऐसी और अतिशयकरके भयंकर रूप जाको ऐसी जो चंडी ताय स्मरण करे ॥ २० ॥ २१ ॥ अधोमुखीति ॥ शिघा जो फिर नीचो मुख जाको भयंकर शब्द जाको और ज्वाला अग्निकी Aho! Shrutgyanam गाली ताय पूजन करके मुखमें उठरही
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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