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________________ अर्चनविधिप्रकरणम् ३. - (२३) सरस्वती पांडविकां प्रधानां यक्षोऽपि यक्षं गरुडश्च काकम् ॥ चंडी पुनः पिंगलिकां सदैव शिवां शिवादूत्याधितिष्ठतीह ॥४॥ ॥ टीका ॥ अन्यत्र काली चिडीति प्रसिद्धिः। भषणकाकपिंगला इति इंदः।भषणः श्वा काकः करटः प्रसिद्धः पिंगला उलकवदना शकुनविशेषः एतेषामितरेतरबंदः। मरुस्थल्यां भैरवीति गुर्जरेचीवरीति प्रसिद्धिः । अन्यत्र खूराटराजगूहादौ पेचक इति पंचमीजंबुकप्रियतमा शृगालीत्यर्थः।अत्रास्मिन् ग्रंथे मुनिसत्तमैः प्रधानमुनिभिरेतच्छकुनरअपंचकम्। शकुनेषु रत्नं मुख्यमित्यर्थः। “जातौ जातौ यदुत्कृष्टं तद्रत्नमभिधीयते"। इतिवचनात्तेषां पंचकं पंचैव पंचकं स्वार्थ कः। सदा कीर्त्यते सर्वकालं प्रतिपाद्यते न तु कदाचित् ॥ ३ ॥ एतेषां शकुनत्वे मुख्यत्वं कुतस्तदर्थमाह ॥ सरस्वतीति ॥ सरस्वती ब्रह्मपुत्री पोदकी पांडविकापरनाम्री अधितिष्ठति । एतस्या इयमधिष्ठात्रीत्यर्थः । प्रधानं यक्षः कुबेरः क्षेत्रपालाधिपः यक्षं श्वानमधितिष्ठति।गरुडः काकमधितिष्ठति चिडी देवी पुनः पिंगलिकां पूर्वोक्तां कालीचिडी वा चीवरीमधितिष्ठति सदैव सर्वकालं शिवादूती शिवा पार्वती तस्याः दूती अनुचरी शिवां शृगालीमधि. ॥ भाषा ॥ पोदकी १ ये कालीचिडिया नाम करके प्रसिद्ध है, और भषण २ ये श्वानको नामहै और काक ३ ये प्रसिद्धही है, और पिंगला ४ घुघ्घूको सो मुख जाको शकुनमें है गुर्जरदेशमें चीवरी नाम करके प्रसिद्ध है, और जगहरात्रीचरी कहै हैं, कहूं खूसटराजा कहैंहैं, कहूं पेचक कहैहै, और मारवाडमें भैरी कहहैं, और पांचवीं जंबुकप्रियतमा ५ शृगाली प्रसिद्ध नाम है या ग्रंथमें महामुनिने ये पांच शकुननमें रत्न नाम मुख्य क है ॥ ३॥ इनकू शकुननमें मुख्यभावका. यते कहैं है ताको प्रयोजन कहै हैं । सरस्वतीति । ब्रह्माजीकी बेटी ब्रह्मपुत्री जो सरस्वती सो पांडविका जाको नाम ऐसी जो पोदकी तापे स्थितरहैहै याकी अधिष्ठाता देवीहै याते याकू सरस्वती, और ब्रह्मपुत्री, और पांडविका, इतने पौदकीके नाम कहेंगे, और यक्ष जो कुबेर अथवा क्षेत्रपालकेभी अधिप भैरव सो श्वानपै स्थित रहैहैं, और गरुड काकपै स्थित रहेहैं, और चंडी जो देवी सो पिंगलिका जो काली चिडी वा चीवरी ताके ऊपर स्थित रहेहैं, और शिवा जो पार्वती ताकी दृती अनुचरी सो शृगालीप स्थितरहै है, इन पांचौं अधिष्ठाता देवतानकू मुख्यता Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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