SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषाटोकासमेत। (३१) व्यालैश्च नखिभिश्चौरैर्बीभत्सैः क्रोष्टुभिस्तथा ॥ वित्रासनं भवेद्यस्य स्वप्नेसोऽपि विनश्यति ॥६६॥काकैः कङ्कः शकुनिभिंगृहीत्वाक्षिप्यते त्वधः॥स्वप्ने यः पुरुषस्तस्य निर्दिष्टं मरणं ध्रुवम् ॥ ६७ ॥ शयनादासनादृक्षात्प्राकारादेववेश्मनः ॥ तुरगाद्वाहनाचापि पतनं मरणप्रदम् ॥ ६८ ॥ स्वप्नमध्ये धूलियुक्ते भूतले यो निरन्तरम् । उपाविशेद्वियति वा गच्छेत्स मरणं व्रजेत्॥६९॥वराहकपिमार्जारव्याघ्रजम्बुककुक्कुटैः ॥ स्वप्ने आकृष्यते यश्चम्रियते सोऽचिरान्नरः॥ ७०॥ गृध्रध्वांक्षपतत्रीणां मूर्ध्नि स्यात्पतनं यदि।।यस्य सोऽपि कृतान्तस्य भक्ष्यतामेति मानवः ॥७१ ॥ विकराला पिङ्गलाक्षी स्वप्ने यं मर्कटी नरम्।।आलिङ्गति सना चाशु बहुदुःखंसमश्नुते७२ वानरेण मृगेणाथ मेषेण महिषेण च ।। युक्तं रथं समारोहेद्धहुक्केशः स पीडयते ॥७३॥स्ववंशसंभवः पुंभिर्मृतैराहूयते च यः ॥ स्वप्नमध्ये पुमांस्तस्य मरणं जायतेऽचिरात् ॥७४॥स्वप्नमध्ये च संन्यासग्रहणं कुरुते यदि ॥ कलहंवा भवेत्सोऽपिक्केशभामात्र संशयः॥७॥धान्यराशेधूलिमिश्रीअंतआकृति स्त्रीको प्राप्तहुआ जो कामीपुरुष उससे अथवा कन्यासे रमे वह शीघ्र मरे ॥६५॥ सोसे नाखूनोंवाले जीवोंसे चोरोंसे घिनोनोंसे गीदडोंसे जिसको स्वप्नमें डरहो वह भी नाशको प्राप्त होय ॥६६॥जो पुरुष स्वप्नमें काक सफेद चीले इन पक्षियोंद्वारा पकडकर नीचे डालजाताहै उसका मरयौं निश्चय होताहै ॥ ६७ ॥ शय्याते आसन वृक्ष किला देवतास्थान घोडावाहन इनसे गिरना मृत्युको देताहै ॥ ६८ ॥ स्वप्न के बीचमें धूलियुक्त पृथिवीतलमें जो पुरुष निरन्तर प्रवेश करे अथवा आकाशमें जाय वह मृत्युको पाताहै ॥ ६९ ॥ जिस पुरुषको स्वप्नमें (सुअर) बन्दर बिलाव व्याघ्र गीदड कुत्ते खीचतेहैं वह शीघ्रही मरताहै ॥ ७० ॥ गिद्ध काक बगुला इन पक्षियोंका जिसके मस्तकपर पतनहो वह निश्चय मरताहै ॥ ७१ ॥ भयंकर पीले नेत्रत्राला क्रौंच नाम पक्षी जिसको लिपटताहै वह शीघ्र बहुत दुःख भोगताह ॥७२॥ वानर मेढा हिरण भैसा इनसे युक्त रथपर जो चढताहै, वह बहुत क्लेशोंसे दुःखित होतहि॥७३॥ स्वप्नमें जिस पुरुषको अपने वंशमें उत्पन्न हुआ मरा पुरुषबुलावै वह निश्चय मरै ॥७४।। स्वप्नके बीचमें सन्यास ग्रहण करता अथवा लडाई करताहै वह क्लेशभागी होताहै, इसमें कुछ संशय नहींहै ॥७॥ धान्यराशिको Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy