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________________ • (36) स्वाध्याय । म्रियते नरः ॥ ३६ ॥ हसते शोचति मुहुर्नृत्यं चारभते पुनः ॥ वधो बन्धश्च तस्य स्यादत्र नास्त्येव संशयः ॥ ३७ ॥ स्वप्रमध्ये मूत्रयते हदते वा च यो नरः ॥ लोहितं तस्य बहुशो धनं धान्यं च नश्यति ॥ ३८ ॥ सिंहो गजोऽथ सर्पश्च पुरुषो मकरस्तथा ॥ यं कर्षति भवेन्मुक्तो बद्धोऽन्यो बन्धितो भवेत् ॥ ३९ ॥ पितृतर्पणवैवाहसांवत्सरिककर्मसु ॥ कुरुते भोजनं स्वप्ने यः स चाशु विनश्यति ॥ ४० ॥ स्वप्ने यः शैलशृङ्गाग्रे श्मशाने चापि पूरुषः ॥ अधिष्ठाय पिबेमधं मद्यतः स म्रियेत वै ॥ ४१ ॥ यस्य स्वप्ने रक्तपुष्पं सूत्रं रक्तं तथैव च ॥ बध्यते वेष्टयते चाङ्गे स शुष्को भवति ध्रुवम् ॥ ४२ ॥ पाण्डुरोग परीताङ्गं स्वप्ने दृष्ट्वान्यपूरु षम् ॥ रुधिरेण विहीनः स्यात्तस्य देहो न संशयः ॥ ४३ ॥ जटिलं रूक्षमलिनं विकृताङ्गं मलीमसम् ॥ स्वप्ने दृष्ट्वान्य पुरुषं मानहानिः प्रजायते ॥ ४४ ॥ शत्रुभिः कलहे वादे युद्धे यस्य पराजयः ॥ स्वप्नमध्ये भवेत्तस्य वधो बन्धोऽथवा भवेत्॥४५॥ यस्य गेहेऽङ्गणे वाथ विशंति मधुमक्षिकाः ॥ स्वप्ने जाय वह शीघ्र मरे ॥ ३६ ॥ जो हसता शोचता है फिर वारंवार नृत्यको आरम्भ करता है, उस पुरुषका नाश होय, अथवा बन्धन होय इसमें कुछ संदेह नहीं है ॥ ३७ ॥ जो स्वप्न में रूधिर मूतता अथवा रूरकी विष्ठा त्यागन करें उस पुरुषका अनेकप्रकार से धन धान्य नाश होता है ॥३८॥ सिंह,हाथी, सांप, पुरुष, मकर, जिसको स्वप्नमें खीचता है वह छूटा हुआ बंधताहे ॥३९॥ पितृ तर्पण विवाह कार्यों में वार्षिक कर्मों में जो स्वप्न में भोजन करता है वह शीघ्रही नाशको प्राप्त होताहै ॥ ४० ॥ जो पुरुष पर्वत के शिखरके ऊपर अथवा श्मशान में बैठकर मदिरापिये वह निश्चय मरे ॥ ४१ ॥ जिस पुरुषके स्वप्न में लालफूल लाल सूत्र शरीर में बाँधा जाय वा लपेटा जाय वह पुरुष निश्चय सूखता ॥ ४२ ॥ स्वप्न में अन्य मनुष्य को देखकर जिसके पाडुरोग होजाय उस पुरुषका शरीर रुधिरसे नष्ट होय इसमें कुछ संशय नहीं है ॥ ४३ ॥ जटावाले रूखे मलीन विकृताङ्ग निन्दासे युक्त अन्य पुरुषको स्वप्न में देख मानहानि होती है। ॥ ४४ ॥ शत्रुओं के साथ जिसका कलहमें विवाहमें युद्ध में पराजय होय उसका वध अथवा बंधन होय ॥ ४५ ॥ स्वद्यमें जिसके घर में अथवा आँगनमें सहदकी मक्खियें बास करती है वह मृत्युको प्रात Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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