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________________ (४१८) वसंतराजशाकुने-सप्तदशो वर्गः। ॥ टीका ॥ ह्ये मित्रसमागमः । जंघयोरर्थहानिः स्याद्गुदे रोगभयं भवेत् ॥ १९ ॥ ऊरुयुग्मे वाहनाप्तिर्जानुयुग्मेऽर्थसंग्रहः । नीरोगी जंघयोश्चैव पादयोर्धमणं भवेत् ॥२०॥ ॥ इति स्थानफलम् ॥ पतनानंतरं यस्य रोहणं यदि जायते।पतने फलमुत्कृष्टं रोहणे निष्फलं भवेत्॥ ॥२१ ॥ रोहणे चोद्धवक्रे च स्कंधे बक्र प्रपातनम् । भवेद्यदि सुशीघ्रण तत्फलं जायते ध्रुवम् ॥ २२ ॥ मृत्युयोगे दग्धदिने वारे च यमघंटके । चंद्रेश्ष्टमस्थे धनगे जन्म:विषनाडिके ॥ २३ ॥ क्रूरग्रहे क्रूरलमे क्रूरै च यदि जायते । अष्टमस्थे क्रूरयुते विष्टिवैधृतिदूषिते ॥ २४॥ दुनिमित्ततया ज्ञाते निष्फला जायते ध्रुवम् ।स्पशमात्रे तयोः सद्यः सचैलं स्नानमाचरेत्॥२५॥सद्यो दानं विजानीयात्तिलमाषं च दक्षिणा।तत्सरूपं च यःशक्या दद्याच्च फलसार्पिषम्।२६पंचगव्यं तुसंप्राश्य कुर्यादेवावलोकनम्।शास्त्रस्य वचनं कुर्याद्यदीच्छेदात्मनःशुभम् ॥२७॥इति पल्लीविचारः। ॥ भाषा ॥ गुह्यस्थानपै पडै तो मित्रको समागम होय. जंघानपै पड़े तो अर्थकी हानि होय. गुदापै पडै तो रोगभय होय ॥ १९ ॥ दोनों घोटूनपै पडै तो वाहनकी प्राप्ति होय. जानु जो पीडुरी तापै पडै तो धनको संग्रह होय. जंघानके ऊपर पडै तो, निरोगी होय, पाँवनके ऊपर पडै तो भ्रमण करावै ॥ २० ॥ ॥ इति शरीरस्थानफलम् ॥ जाके देहपै पल्ली पडै पडकर फिर अंगपै ऊंची चढ जाय तो पडबेके फल तो उत्कृष्ट और चढवेको फल निष्फल है ॥ २१ ॥ ऊपरमुखपै कंधापै चढजाय तो निष्फल और इनपै पतन होय तो फल शीघ्र होय ॥२२॥ मृत्युयोगमें दग्धदिनमें वा वारमें यमघंटमें आठमें चंद्रमामें जन्मनक्षत्रमें ॥ २३ ॥ क्रूर ग्रहमें क्रूरलग्नमें आठमें क्रूरग्रहमें भद्रामें वैधतिमें ॥ २४ ॥ या करके इन दुनिमित्तनमें याको फल निष्फल होय जाय निश्चय या स्पर्शसं तत्काल सचैल वस्त्रसहित स्नान करे ॥ २५ ॥ फिर तिल उडद दक्षिणा इनको दान करै पल्लीको स्वरूप सुवर्णको बनायकरके फल घृतसहित दान करै।।२६॥पंचगव्य प्राशन कर, फिर देव विष्णुको दर्शन करनो. जो अपनो शुभ इच्छा करै तो या रीतिसूं शास्त्रको वचन करे॥२७॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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