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________________ चतुष्पदानां प्रकरणम् । (३८५) रुतेक्षणे ग्रामवलीमुखस्य जयाय नामग्रहणं भयाय ॥ इष्टा गतिर्दक्षिणतो न चेष्टा व्यासंगकारी गमनोधतानाम् ॥१९॥ ॥ इति वानरः॥ ॥ टीका ॥ त्रावुपारष्टात्पतति तदा षण्मासमध्ये मरणमेति । चरणौ जिघति तदा रोगोत्पत्तिः। मस्तकं लिहति तदा राज्ञो भयं वक्ति । यदा तमुल्लंध्य याति तदा मतिः । यदा स्त्रीशिरो लिहति तदा भर्तुम॒तिः। यदा स्त्रीहृदयं लिहति तदा पुत्रमृतिः । यदि स्त्रीचरणौ लिहति तदा श्वश्रूमृतिः। यदा भक्षणं करोति तदा मरणमुत्पद्यते । यदा त्वरितगत्या गृहाइहिर्याति तदा रोगनाशः शत्रुनाशश्च ॥ १८॥ ॥इति मार्जारः॥ रुतेक्षणे इति ॥ ग्रामवलीमुखस्य वानरस्य रुतेक्षणे जयाय स्याताम् । नामग्रहणं भयाय स्यात् । तस्य गतिः दक्षिणत इष्टा न चेष्टा । यतो गमनोधतानां स व्यासगकारी स्यात् ॥ १९ ॥ ॥ इति वानरः॥ ॥भाषा॥ खाली मुख होय शब्द करै तो अशुभ है. और बिलाव नाना प्रकारके शब्द बोलते होंय और युद्ध करते होंय वो निंदाके योग्य हैं. और ग्रंथमें ऐसो लिखोहै ॥ रात्रिमं ऊपर आय पडे बिलाव तो छः महीनामें वो मनुष्य मरजाय. जो बिलाव: पांव सूंघे तो रोगकी उत्पत्ति होय जो मस्तककू चाटै तो राजाको भय होय. जो मनुष्यकू उलंघन करजाय तो वो पुरुष मरजाय, जो स्त्रीके मस्तककू चाटे तो वाके भर्तारंकी मृत्यु करै, जो स्त्रीके हृदयकू चाटै तो पुत्रकी मृत्यु होय, जो स्त्रीके चरणकू चाटै तो सासू मरै जो भक्षण करै तो मरण करै. जो शीघ्र गति करके बिलाव घरसूं बाहर चल्यो जाय तो रोगको नाश और शत्रुको नाश करै ॥ १८॥ ॥ इति मार्जारः॥ रुतेक्षणे इति ॥ गमनमें उद्युक्त होय रहे उन पुरुषनकू वानरको शब्द देखना जयके अर्थ और नाम लेनो भयके अर्थ, वानरकी दक्षिणगति योग्य है, और मैथुनचेष्टा योग्य, नहीं ॥ १९॥ ॥ इति वानरः॥ . Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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