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________________ (३६२) वसंतराजशाकुने त्रयोदशो वर्गः । व्योम्नस्तरोवापि पतनधस्ताजीवावधिं जल्पति पिंगलाख्यः॥ उत्थाय चेद्याति ततः प्रशांतं तत्रायतौ मृत्युमुखप्रविष्टम् ॥१४५॥ स्थानप्रदीप्ते वसतेविनाशः काष्ठाप्रदीप्ते तु कलेवरस्य॥ निनाददीते तु भवेदनस्य दीप्तत्रये स्थानवपुर्धना नाम् ॥ १४६॥ स्थानानि पंकास्थिबिलादिकानि दिशो दिनेशान्वितभुक्तिगम्याः॥स्वरौ च वातांबरजावमूनि त्रीणि प्रदीप्तानि वदंति वृद्धाः ॥ १४७ ॥ स्थानाप्तिरोगक्षयवित्तलाभाः शांतत्रये स्यात्रितयं क्रमेण ॥ कृताश्रयो मूर्द्धनि पर्वतस्य बह्रीं श्रियं यच्छति पिंगचक्षुः ॥ १४८॥ ॥टीका ॥ स्यात् ॥ १४४ ॥ व्योम्न इति ॥ व्योम्नस्तरोधिः पतन्पिंगलाख्यः जीवावधि जल्पति चेद्यदि उत्थाय ततः प्रशांतं प्रयाति तत्र आयतौ उत्तरकाले “उत्तरःकाल आयतिः" । इत्यमरः। मृत्युमुखप्रविष्टं करांतीतिशेषः॥१४५॥स्थानप्रदप्ति इति ॥ स्थानप्रदीप्ते वसतेविनाशः स्यात् । काष्ठाप्रदीप्ते तु कलेवरस्य विनाशः स्यात् । निना ददीप्ते तु धनस्य विनाशो भवेत् । दीप्तत्रये स्थानवपुर्धनानां विनाशः स्यात्॥१४६॥ स्थानानीति ॥ पंकास्थिविलादिकानि स्थानानि दिनेशान्वितभुक्तिगम्या दिशः स्वरौ च वातांवरजी वृद्धाः अमूनि त्रीणि प्रदीप्तानि वदंति ॥१४॥ स्थानाप्तीति। ॥ भाषा॥ खा तापै बैठकर जल आकाशते हुये शब्द क्रमकरके बोले तो पुरुषनकू धर्यको दूरकरवे. वारो निश्चय भय होय ॥ १४४ ॥ व्योम्न इति ॥ जो पिंगल आकाशसं अथवा वृक्षपैसं नीचे पडतो हुयो आवे तो प्राणकी अवधि जाननो, जो उठकरके फिर शांतदिशाकं जाय तो उत्तरकालमें मत्युके मुखमें प्रवेश है ये जाननो॥ १४५ ॥ स्थानप्रदीप्त इति ॥ जो स्थान प्रदीप्त होय तो स्थानको वो घरको नाश करै. और जो दिशाप्रदीप्त होय तो देहको नाश करे, और शब्द प्रदीप्त होय तो धनको नाश होय. जो कदाचित् तीनों दीप्त होय तो स्थान, देह, धन इन तीनोंनकी नाश होय ॥ १४६ ॥ स्थानानीति ॥ कांच, हाड, सादिकनके बिले गटेले ये जामें ऐसे स्थान और सर्यसंयुक्त सूर्यने छोडदानी होय सूर्य जाकू जायगे ये तीनों दिशा और वात अंबर इनते हुये दोनों शब्द इन तीनोंन• वृद्धपुरुष प्रदीप्त संज्ञक कहेहैं ॥ १४७ ।। स्थानाप्तीति ॥ जो स्थान दिशा स्वर ये तीनों शान्त होय Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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