SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिंगलारुते चतुःसंयोगफलप्रकरणम्। (३५३) आप्यानिलागेयवियत्स्वरैः स्यायुद्धे जयः पश्चिमयुद्धकर्तुः ॥ अंभोनलाकाशसमीरशब्दै रणो गरीयान्भवति स्वभृत्यैः॥ ॥११०॥अंभोमरुदह्निवियद्रुतैश्च द्रुतं रणे स्यान्मरणंप्रयाणात्॥पयःसमीरांबरवह्निनादैः प्रभोषिद्भिः सह मृत्युमाहुः ॥ १११॥पयो विहायोऽग्निसमीरजातरंभोवियद्वातहुताशा ॥ महाहवेनेह महीपतेः स्युर्वैरिक्षयक्षेमजयार्थलाभाः॥११२॥ भूतोयतेजोमरुदंबराख्यैबूते वैः शांतकृतस्थितियः ॥ महायशोराशिभृतांतरालदिक्चक्रवालं स. ददाति राज्यम् ॥ ११३॥ ॥ टीका ॥ आप्यति॥आप्यानिलाग्नेयवियत्स्वरैयुद्धं स्यात् तथा पश्चिमयुद्धकर्तुर्जयः स्यात् अं. भोनलाकाशसमीरशब्दैः गरीयान्महारणः स्वभृत्यैर्भवति ॥ ११० ॥ अंभइति॥अं. भोमरुदहिवियद्रुतैस्तु प्रयाणाद्रुतं रणे मरणं स्यात् । पयासमोरांबरवह्निनादौर्दिषद्भिः सह प्रभोर्मृत्युमाहुः॥१११॥पय इति।। पयोविहायोनिसमीरजातैः अंभोवियद्वातहुताशर्वाइह महीपतेर्महाहवेन वैरिक्षयक्षेमजयार्थलाभाः स्युः ॥ ११२ ॥ भूतोयेति॥भतोयतेजोमरुदंबराख्यै रवैः शांतकृतस्थितियों ब्रूते स महायशोराशिभृता ॥ भाषा॥ तो परायेके कार्यकरके विरोध और मृत्यु होय ॥ १०९ ॥ आप्येति ॥ जो पिंगलके जल, पवन, अग्नि, आकाश इन म्वरनकरके युद्ध होय. और पिछाडीपै जो युद्ध करै ताको जय, और जल, अग्नि, आकाश, पवन इनशब्दकर अपने भृत्यनके साथ घोर संग्राम होय ॥ ११० ॥ अंभ इति ॥ पिंगलके जल, पवन, अग्नि, आकाश इनशब्दनकरके संग्राममें जातेही शीघ्र मरण होय और जल, पवन, आकाश, अग्नि ये शब्द बोले तो वैरीनकरके सहित स्वामीको मृत्यु होय ॥ १११॥ पय इति ॥ जल, अकाश, अग्नि, पवन इनते हुये शब्द होंय वा जल, आकाश, पवन, अग्नि इनते हुयो होय तो राजाकू महान् संग्रामकरके वैरीको क्षय होय. और क्षेम, जय, अर्थ लाभ होय ॥ ११२॥ भूतोयेति ।। शांत दिशामें स्थित पिंगल पृथ्वी, जल, तेज, पवन, आकाश ये शब्द बोले तो महान् यश-- Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy