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________________ ( ३१२ ) वसंतराजशाकुने - द्वादशो वर्गः । काकेन भुक्ते सहिरण्यपिंडे ज्ञेयं नरैरुत्तममात्मकार्यम् ॥ भुक्ते सरूप्ये खलु मध्यमं स्याल्लोदेन युक्ते त्वधमं प्रदिष्टम् ॥ १६३ ॥ विवादवाणिज्यविवाहवृष्टिक्षेमार्थचिंताकृषिभोगरोगाः ॥ संग्रामसेवानृपकार्यदेशा इत्यादयोऽस्मिन्परिभावनीयाः ॥ || १६४ || चेष्टामवामां विदधाति याति प्रदक्षिणं दक्षिणपक्षमुच्चैः ॥ ग्रीवां तथोच्चैः कुरुते सुशब्दः स्थानं मनोज्ञं श्रयते द्रुमं वा ॥ १६५ ॥ एवंविधां यो विदधाति चेष्टां पिंड समादाय शुभः खगोऽसौ ॥ अभीष्टकार्यादधिकं करोति चेष्टाविपर्यासतयान्यथात्वम् ॥ ६६ ॥ ॥ टीका ॥ काकेनेति ॥ सहिरण्यपिंडे काकेन भुक्ते सति उत्तममात्मकार्य नरैर्ज्ञेयं सरूप्ये भुक्ते सति मध्यमं कार्यं स्यात् लोहेन सहिते भुक्ते त्वधमं कार्य प्रदिष्टम् ॥ १६३ ॥ विवादेति ॥ विवादवाणिज्यविवाहवृष्टिक्षेमार्थचिन्ताकृषिभोगरोगाः सग्रामसेवानृपकार्यदेशा इत्यादयोऽस्मिन्पिड़े परिभावनीयाः विचारणीया इत्यर्थः ॥ १६४॥ चेष्टामिति ॥ यदि चेष्टामवामां विदधाति दक्षिण पक्षमुचैः कृत्वा प्रदक्षिणं याति तदा सुशब्दः समस्तं कार्यं कुरुते यदि ग्रीवामुचैः कृत्वा मनोज्ञं स्थानं मं वा यति चेत्समस्तं कार्यं कुरुते इति ज्ञेयम् ।। १६५ ।। एवंविधामिति ॥ ॥ भाषा ॥ अपनो कार्य विचार करके आप पीछे हट आवे ॥ १६२ ॥ मंत्र: ॐ इरिटिमिरिटिकाक चांडाली स्वाहा ॥ ये मंत्र पिंडन अभिमन्त्रण करने को है ॥ ॐ ब्रह्मणे विश्वाय काकचा डालाय स्वाहा ! ये मन्त्र काकनके आह्वानको है ॥ काकेनेति ॥ जो काक सुबर्णसहित पिण्डनकूं भक्षण करै तो अपनो कार्य उत्तम जाननो. और जो चांदी सहित पिण्डकूं भक्षण करे तो मध्यम कार्य जाननौ. जो काक लोहेको टूक जानें ती पिंडकूं भक्षण करै तो कार्य अधम जाननो || १६३ ॥ विवादेति ॥ विवाद, वाणिज्य, विवाह, वृष्टि, क्षेम, धनचिन्ता, कृषी, भोग, रोग, संग्राम, सेवा, राजकार्य, देश ये सब या पिण्डमें विचारकरनो योग्य है ॥ १६४ ॥ चेष्टामिति ॥ जो काक दक्षिणअंगकी चेष्टा करें और दक्षिण पंखकूं ऊंचे करके दक्षिणभागमें चल्यो जाय सुन्दरशब्द बोले और जो ग्रीवाकूँ ऊंची करके सुन्दरशब्द बोलै सुन्दरस्थानपे जाय बैठे अथवा वृक्षपै जाय बैठे तो समस्त कार्य करें ॥ १६५ ॥ एवंविधामिति ॥ जो काक पिण्ड लेकरके ऐसी २ चेष्टा करै वो शुभ पक्षी वांछित Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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