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________________ (३०२ ) वसंतराजशाकुने - द्वादशी वर्गः । कर्माणि तस्योपशमाय राजा प्रवर्तयेच्छांतिकपौष्टिकानि ॥ अन्नाज्यगोभूमिवसूनि दद्याद्युद्धं विदध्याच्च न यावदब्दम् ॥ १३३॥ इति काकरुते स्थानस्थितप्रकरणं पंचमम् ॥ ५॥ ॥ अथ स्वरविचारः ॥ कांकामिति क्षेमविधौ विरावः कींकीमितीष्टाशनपानहेतुः ॥ करोति कूंकूमिति वार्थलाभं कंकं ध्वनिः कांचनलाभमाह ॥ ॥ १३४ ॥ केमिति स्त्रीति च योषिदात्यै भोगाय कोंकोमिति शब्दितं स्यात् ॥ अपत्यलाभं कुकु इत्यनेन गंतुः फलं केकव इत्यनेन ॥ १३५ ॥ ॥ टीका ॥ चौराशित्रूद्भवधर्मनाशा आपतंति ॥ २३२ ॥ कर्माणीति ॥ तस्याद्भुतस्योपशमाय राजा शांतिकपौष्टिकानि प्रवर्तयेत् अन्नाज्यगोभूमिवमूनि दद्यात् यावदन्दं अब्दपर्यंतं युद्धं न विदध्यात् ॥ १३३ ॥ इति श० वसंतराजटीकायां काकरुते स्थानस्थितप्रकरणं पंचमम् ॥ ५ ॥ ॥ अथ स्वरविचारः ॥ कांक्कामिति ॥ क्कांक्कामिति क्षेमविधौ विरावः स्यात् । कीकीमिति इष्टाशनपानहेतुर्भवति । कूंकूमिति शब्दोऽर्थलाभं करोति । कंक्कं इति ध्वनिः कांचनलाभमाह ॥ १३४ ॥ केकेमिति ॥ कैकें इति शब्दः स्त्रीति च योषिदाप्त्यै भवति । कोंकोमिति ॥ भाषा ॥ भूतादि, चौर, अग्नि लगनो, शत्रुनकी प्रगटता, धर्मको नाश ये होय ॥ १३२ ॥ कर्माणीति ॥ ता अद्भुत देखेकी शांतिके लिये राजा शांतिक पौष्टिक करे. और अन्न, घृत, गी, पृथ्वी, धन इनको दान करे और राजा वर्षदिन तांई युद्ध न करै ॥ १३३ ॥ ५॥ इति वसंतराजभाषा टीकायां स्थानस्थितप्रकरणं समाप्तम् ॥ अथ स्वरविचारः ॥ कांकामिति ॥ कांकां ऐसो बोले तो कल्याण होय. और जो काक कीं कीं ऐसो बोले तो वांछित भोजन पान ये होंय और कूंकूं या प्रकार बोले तो अर्थलाभ करे. और कंकं या प्रकार ध्वनि करे तो कांचन लाभ होय ॥ १३४ ॥ केकेमिति । केके या प्रकार कागली बोले तो स्त्रीकी प्राप्ति करे, और कोंकों ये शब्द बोले तो भोग भोगे. और Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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