SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३६) वसंतराजशाकुने-अष्टमो वर्गः। वामं प्रवासे रटितं हिताय तथोपरिष्टादपि टिट्टिभस्य ॥ टिटीति शांतं टिटिटीति दीप्तं शब्दद्वयं चास्य बुधा वदन्ति ॥ १३॥ ॥ इति टिट्टिभः॥ कारंडवाटीजलवायसानामुपस्थिताभ्यां रखवीक्षणाभ्याम् ॥ बहूनि दुःखानि भवंति गंतुर्मुहुः प्लवाद्यास्त्वपरे प्रश- . स्ताः ॥ १४ ॥ ॥ इति कारंडवादयः॥ ॥ टीका ॥ . वाममिति ॥ प्रवासे टिट्टिभस्य वामं रटितं हिताय भवति तथोपरिष्टादपि अस्य शब्दद्वयं बुधा वदंति एकं टिटीति शांतं एकं टिटिटीति दीप्तम् ॥ १३ ॥ ॥ इति टिट्टिभः ॥ ॥ कारंडवाटीति ॥ कारंडवः करेडुआ इति लोके प्रसिद्धः आटिः आडि इति प्रसिद्धः जलवायसाः जलोद्भवाः काकाः एतेषां रखवीक्षणाभ्यां बहूनि दुःखानि भवंति अपरे ये जलद्विजाः जलपक्षिणः ते प्रशस्ताः॥ १४ ॥ ॥ इति कारंडवादयः ॥ ॥ भाषा॥ ॥वाममिति ॥ मार्गमें टिट्टिभ पक्षीको बायो शब्द हितके अर्थ जाननो, और जो ऊपर शब्द करै तो भी हितके अर्थ जाननो. एक तो टिटि ये शब्द शांतहै और टिटिटि ये शब्द दीप्त जाननो ॥ १३ ॥ ॥ इति टिट्टिभः॥ कारंडवाटीति ॥ कारडव करेडुआ या नामकर प्रसिद्ध है. और आटिवा आडी या नामकर प्रसिद्ध है, और जलकौआ काक इनके समीपमें शब्द और देखनो ये दोनों बहुत दःखके देबेवारे हैं. और जो मेंडका जलकूकूडाकू आदिले जलके पक्षी हैं ते शुभ हैं ॥ १४ ॥ ॥ इति कारंडवादयः ॥ . Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy