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________________ पोदकीरते हंसादिकमकरणम् । ॥ इति हंसः॥ वामांघ्रिणैकेन बकः स्थितः सन्धनदिपत्नीविषयाप्तिहेतुः॥ पुनःपुनः पश्यति भूमिपांथौ यो वा स विघ्नानपहंति सर्वान् ॥६॥त्रस्तो बको यः ककुभश्चतस्त्रः पश्यन्कृतं चौरभयं ब्रवीत्ति ॥ निरूपयन्नात्मवपुर्विशंकः स्त्रीरत्नलाभाय दिनत्रयेण ॥ ७॥ ॥ इति बकः॥ ॥ टीका ॥ यदा प्रथमं शब्दं कृत्वैव विरमते तदा तस्य शब्दस्य फलं विचारणीयमेवमन्यत्रापि ॥५॥ ॥ इति हंसः॥ वाम इति ॥ वामांधिणा एकेन बकः स्थितः सन् धनर्द्धिपत्नीविषयाप्तिहेतुर्भवति यः पुनःपुनः भूमिपथौ पश्यति स सर्वान्विनानपहंति ॥६॥त्रस्तइति ॥ यः बकस्त्रस्तः सन् चतस्त्रः ककुभः पश्यञ्चौरकृतं भयं ब्रवीति सएव विशंकः आत्मवपुर्निरूपयन् दिनत्रयेण स्त्रीवित्तलाभाय भवेत्॥७॥ ॥ इति बकः॥ ॥ भाषा॥ ऐसे शब्द करत जा शब्दपै चुप होजाय वाकोही फल विचारनो ॥ ५ ॥ ॥ इति हंसः ॥ वाम इति ॥ बगुला एक बांये पाँवकरके स्थित होय तो धन ऋद्धिः स्त्री विषय प्राप्ति करै. अथवा दूसरी स्त्रीकी प्राप्तिकरै. और जो वारंवार पृथ्वीमाऊं और मार्गीमाऊं देखै तो सर्व विघ्ननकू दूर करै ।। ६ ।। त्रस्त इति ॥ जो बगुला त्रासपाय रह्यो होय फिर चारों दिशानमें देखतो होय तो चौर करके कियो हुयो भय कहै है ये जाननो और वोही विशंक होयकर अपने देहकू निरूपण करत तीन दिनकरकेही स्त्रीरूपी रत्नवित्त इनको करै ॥ ७ ॥ ॥ इति बकः॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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