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________________ ( १९४) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। वामस्वरा दक्षिणकायचेष्टा तारागतिः शांतसमाश्रयश्च ॥ यातुः प्रयच्छंति समस्तकामानिनंति तानुक्तविपर्ययेण३०६॥ पुनः पुनर्वर्त्मनि यः प्रवासी विचेष्टयते पांथसमूहमात्रा॥असंशयं तस्य समापतेतां समस्तवित्तव्ययजीवनाशौ ॥३०७॥ श्यामानुलोमा प्रथमं ततो नु स्यादध्वगस्य प्रतिलोमगा चेत॥ आस्तां तदाभीष्टफलाप्तिवार्ता मन्येऽतिकष्टं निपतत्यरिष्टम् ॥३०८॥ वामे रटित्वा यदि याति तारा भवंति कामाः सफलास्तदानीम् ॥ कृत्वापसव्यध्वनिमध्वगस्य वामं प्रयांती प्रति हन्ति सिद्धिम् ॥ ३०९॥ ॥ टीका॥ तदरं परं कदाचिदुःशकुनमुल्लंघयेत् तत्र वरम् ॥ ३०५ ।। वाम इति ॥ वामस्वरा दक्षिणकायचेष्टा तारागतिःशांतसमाश्रयश्च यातुः समस्तकामान् प्रयच्छंति उक्तविपर्ययेण तानिनन्ति॥३०६॥पुनरिति ॥ यः प्रवासी पुनःपुनः पांथसमूहमात्रा विचेष्टयते तस्य असंशयं समस्तवित्तव्ययजीवनाशौसमं भवेताम् ॥३०७॥ श्यामेति॥ यदि प्रथमं श्यामा अनुलोमा स्यात् ततो नु अध्वगस्य प्रतिलोमगा चेत्स्यात् तदा अभीष्टफलाप्तिवार्ताआस्तां मन्ये अहमिति शेषः। अनिष्टमतिकष्टं निपतति ॥३०८॥वाम इति ॥ यदि वामे रटित्वा तारा याति तदानी कामाः सफला भवंति अध्वगस्य अपसव्ये ध्वनि कृत्वा वामे प्रयोती सिद्धिं विनिहंति ॥ ३०९ ॥ ॥ भाषा॥ ॥ ३०५ ॥ वाम इति ॥ वामस्वर होय, दक्षिण अंगमें चेष्टा करती होय. जेमने मांऊं गति होय, शांतस्थानमें स्थित होय तो गमन कर्ताकू सर्व कार्य देवे. और जो विपरीत होय तो सर्वकामनकू नाश करै ॥ ३०६ ॥ पुनरिति ॥ जो परदेशमें बारंबार पांथसमूहकी सं. गमें यात्रा चेष्टा करो करै तो ताके निःसंदेह समस्त द्रव्यको व्यय और जीवको नाश होय ॥ ३०७ ॥ श्यामेति ॥ जो श्यामा प्रथम तो अनुलोमा होय ता पीछे मार्गीकू प्रतिलोमा होय तो अभीष्टफलकी प्राप्तिकी वार्ता होय ये अनिष्ट और अरिष्ट दूर करै हैं ॥ ३०८ ॥ ॥ वाम इति ॥ जो पोदकी वामभागमें शब्दकरके दक्षिणा होयजाय तो सबले काम सफल होय. और जो जेमने मांऊं शब्दकरके वामभागमें चली जाय तो सिद्धिकू नाशकरे ॥३०९॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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