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________________ ( १६६ ) वसंतराजशाकुने - सप्तमो वर्गः । शशांकना ड्यामथवार्क नाडयामतः समीरे प्रविशत्युशंति ॥ यशः समृद्धिं कुशलं जयं च निर्गच्छति स्यात्फलवैपरीत्यम् ॥ २०५ ॥ ऐंदवी वहतिं नाडिका यदा स्वेच्छया प्रविशति प्रभंजनः ॥ पोदकी व्रजति दक्षिणा यदा स्यात्तदा सकलमीप्सितं फलम् ॥ २०६ ॥ नाडिका वहति तापिनी यदा निस्सरत्युदरतः समीरणः ॥ अप्रदक्षिणगतिर्धनुर्धरी स्यादनिष्टफलमक्षयं तदा ॥ २०७ ॥ ॥ टीका ॥ लेन रहिता स्यात् ॥ २०४ ॥ शशांकेति ॥ शशांकनाड्यामश्रवा अर्कनाड्यां अंतः समीरे वायौ प्रविशति सति पुंसः यशः कीर्ति समृद्धिं संपदं कुशलं श्रेयः जयं प्रतीतं मुशंति कथयंति वायोर्निर्गच्छतः सतः पुनः वैपरीत्यं कथयति ॥ २०५ ॥ ऐंदवीति यदा नाडिका ऐंदवी चांद्री वहति प्रभंजने वायौ स्वेच्छया प्रविशति सति अंतरितिशेषः । पोदकी देवी दक्षिणा व्रजति तदा ईप्सितं सकलं फलं स्यात् ॥ २०६ ॥ ॥ नाडिकेति ॥ यदा तापिनी दक्षिणा नाडिका वहति तथोदरतः समीरणे निःसरति सति अप्रदक्षिणा गतिः वामा धनुर्धरी देवी भवति तदा अक्षयं फलमनिष्टं ॥ भाषा ॥ होय और वायुकरके पूर्ण होय तो दक्षिणतारा कल्याणकी करवेवारी है, और सूर्यनाडी चलरही होय तो वाम तारा कल्याणकी करबेवारी होय. और दोनों स्वर चलरहे होंय तो अनुलोमा फलकी देबेवारी होय. दोनों स्वर खाली होय तो बामा तारा फलकरके रहित होय ॥ ॥ २०४ ॥ शशांकेति ॥ और चंद्रनाडी में वा सूर्यनाडीमें भीतर वायु प्रवेशकरे और दक्षिण तारा होय तो पुरुषनकूं यश, कीर्ति, समृद्धि, संपदा, कुशल, श्रेय, जय होय और जो पवन निकसतो होय तो विपरीत फल कहनो ॥ २०५ ॥ ऐंदवीति ॥ जो चंद्रनाडी बह 1 रही होय और पवन स्वेच्छा करके प्रवेश करे फल संपूर्ण होय ॥ २०६ ॥ नाडिकेति पवन निकलतो होय और धनुर्धरी वामभागमें भीतर और पोदकी दक्षिणा होय तो वांछितजो दक्षिणनाडी वहती होय तैसेही उदरमेंसूं होय तो अक्षय अनिष्ट होय ॥ २०७ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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