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________________ ( १.६० ) वसंतरा जशाकुने - सप्तमो वर्गः । आदौ नतिं दर्शयति प्रयाति समुन्नतिं व्योनि करोति चान्ते ॥ आसन्नमप्याह तदा वराही दूरेऽल्पमूरीकृतमिष्टमर्थम् ॥ ॥ १८४ ॥ उड्डीयमानोन्नतिमादितो या ततो नतिं दर्शयते कुमारी ॥ स्वल्पं चिरं प्राप्यमपीह यत्स्यात्तत्सा प्रयच्छत्यचिरेण भूरि ॥ १८५ ॥ नीचोच्चमध्यैर्गमनैः क्रमेण नीचोच्च मध्यानि फलानि देव्याः ॥ प्रदक्षिणायाः कथयंति याने गृहप्रवेशे पुनरुद्धृतायाः ॥ १८६॥ शिरः कटीजानुसमं . व्रजंती मासायनाब्दैः फलदा क्रमेण ॥ अकल्पिते कालविभाग एवं प्रकल्पिते कल्पित एवं मानः ॥ १८७ ॥ ॥ टीका ॥ आदाविति ॥ आदौ व्योम्नि नतिं दर्शयति परं समुन्नतिं प्रयाति प्रांते च नति करोति तदा वराही देवी ऊरीकृतं स्वीकृतमिष्टमर्थमासन्नमपि दूरे अल्पमाह १८४ ॥ ॥ उड्डीयमानेति ॥ या उड्डीयमाना आदित उन्नतिं दर्शयते ततः कुमारी नति दर्शयते सा इह लोके स्वल्पं चिरं प्राप्यं यत्स्यात्तदचिरेण स्तोककालेन भूरि प्रयच्छति ददाति ॥ १८५ ॥ नीच इति ॥ देव्या नीचोच्चमध्यैर्गमनैः क्रमेण नीचो मध्यानि फलानि स्युः । तत्र प्रदक्षिणायास्तारायाः पूर्वोक्तानि फलानि याने गमने कथयति । उद्धृताया वामायाः पुनः गृहप्रवेशे फलानि प्रतिपादयंतीति तात्पर्यार्थः ॥ १८६ ॥ शिर इति ॥ शिरःकटीजानुसमं व्रजंती कुमारी क्रमेण मासाय ॥ भाषा ॥ आधो फल करे ॥ दाख फिर अंतमें १८३ || आदाविति ॥ प्रनीची दखि तो देवी स्वीकार कार्यकूं दूर और अल्प कहन गति दिखावै फिर नांची गति मंद चले तो बहुत कालमें वा आधेसूं भी थम आकाशमें नीची दीखे फिर ऊंची कियो जो वांछित अर्थ वो निकटमें होनहार होय तोभी वा ॥ १८४ ॥ उड्डीयमानेति ॥ जो प्रथम उडती हुई ऊँची दिखावे तो वो कुमारी अल्प और बहुत कालमें प्राप्त होयबेके योग्य जो वस्तु ताय थोडें कालमें बहुत वस्तु देवे ॥ १८५ नीच इति ॥ पोदकीकी नीची गति मध्यगति ऊंची गति इन तीनों गतिनकरके तीन प्रकारके नीच ऊंच मध्यफल होय हे तामें प्रदक्षिणा ताराके फल पहले कहें हैं गमन समयमें तेही फिर उद्धृताके फलं गृहप्रवेशसमय में प्रतिपादन करें हैं • ॥ १८६ ॥ शिर इति ॥ जो पोदकी शकुनीके मस्तक के समदेशमें होयकर गमन करे तो Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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