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________________ ( १५४ ) वसंतराजशाकुने - सप्तमो वर्गः । किंचिद्रजित्वा पथिकेन साकं तारा ततो गच्छति याथ वा•मा || विश्रम्य विश्रम्य शनैः प्रयाति फलप्रदा सा चटिका क्रमेण ॥ १६४ ॥ गत्वोर्द्धमागच्छति यधस्तात्तारा ततश्वेद्भयदा तदानीम् ॥ एवंविधा वामगतिर्यदि स्याइनुधेरी तत्कुरुतेऽवसानम् ॥ १६५ ॥ चापच्युता या गुलिकेव दूरं धनुर्धरी व्योम्नि जवेन याति ॥ तारा ततः स्याद्यदि सारणाय वामा त्ववश्यं मरणाय गंतुः ॥ १६६ ॥ ॥ टीका ॥ याद एका तारा स्थात् ततो द्वितीया अर्धतारा अथवा वितारा वामा भवति अन्या तृतीया पुनस्तारा ततश्चतुर्थी वामा स्यात् एवं शुक्लपक्षाः सर्वाः स्वं स्वमात्मा - रूपं कार्य क्रमेण कुर्युः ॥ १६३ ॥ किंचिदिति ॥ किंचित्पथिकेन सार्धं व्रजित्वा गत्वा ततस्तारा गच्छति ततो विश्रम्य विश्रम्य विलंबं कृत्वा कृत्वा शनैः शनैः वामां प्रयाति सा चटिका क्रमेण फलप्रदा भवति । क्वचिञ्चिरेणेत्यपि पाठो दृश्यते तत्र चिरेण चिरकालेनेत्यर्थः ॥ १६४ ॥ गत्वेति ॥ या ऊर्द्धं गत्वाऽधस्तादागच्छति ततश्चेतारा भवति तदा भयदा स्यात् । तदानीमिति। तत्कालं न कालांतरे एवंविधा वामगतिर्यदि स्यात्तदा धनुर्धरी अवसानं मरणं कुरुते || १६५॥ चापच्युतेति ॥ या धनुधरी चापच्युता चापं धनुस्तस्माच्च्युता प्रक्षिप्ता गुलिकेव व्योम्निगगनपथे जवेन वेगे न दूरं याति । जवो वेगस्त्वरस्तूणिरिति हैमः ॥ यदि ततस्तारा स्यात्तदा सा ॥ भाषा ॥ . पीछे चौथीवाम होय शुद्ध हैं पंख जाके ऐसी ये संपूर्ण तारा अपने अपने योग्य कार्य क्रम करके करैं हैं १६३ ॥ किंचिदिति ॥ तारामार्ग में गमन करबेवारेकी संग थोडी दूर चल करके फिर बांई चली जाय अथवा विश्राम लेलेके शनैः शनैः वामभागकूं गमन करे वो शीघ्रही वांछित फलकी देबेबारी जाननी ॥ १६४ ॥ गत्वेति ॥ जो पोदकी ऊपर जाय करके फिर नीचेकूं चली आवे और ता पीछे दक्षिणा होय तो भयकी देबेवारी है तत्काल और जो ऊपर जाय नीचे उतर वाम भाय जाय तो मरण करे ॥ १६५ ॥ चापच्युतेति ॥ जो धनुर्धरी धनुषमें सूं निकसी हुई गुलिका ताकी सीनाई आकाशमें वेगकरके दूर चली जाय फिर वहांसे दक्षिण भागमें होय जाय तो युद्धके अर्थ जाननी और जो वामभागमें Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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