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________________ नरेंगिते स्फुरणप्रकरणम् । (८७) मोऽवनागस्फुरणस्य सम्यक् प्रत्येकमध्यक्षफल प्रभावम् ॥सर्वस्य यत्रावगते स्वदेहादुत्पद्यते कर्मविपाकसंवित् ॥ १ ॥ मूर्ध्नि स्फुरत्याशु पृथिव्यवाप्तिः स्थानप्रवृद्धिश्व ललाटदेशे॥ भ्रूत्राणमध्ये प्रिय संगमः स्यान्नासाक्षिमध्ये च सहायलाभः २ ॥ ॥ टीका ॥ बूमोधुनेति ॥ अधुना अंगस्फुरणस्य अध्यक्षफलप्रभावमिति अध्यक्षः प्रत्यक्षोप लभ्यमानो हि फलस्य प्रभावो माहात्म्यं यस्य तं वयं ब्रूमः । कथं सम्यग् यथा स्यातथेति क्रियाविशेषणं प्रत्येकमिति फलस्य विशेषणमेकमेकं प्रति प्रत्येकं विशेषाकारेणेत्यर्थः । यस्मिन्नवगते ज्ञाते स्वदेहात सर्वत्र कर्मविपाकसंवित् कार्यविपाकस्य ज्ञानमुत्पद्यते ॥ १ ॥ मूङ्खति ॥ मूर्ध्नि मस्त स्फुरति सति आशु शीघ्रं पृथिव्यवाप्तिः भूमिप्राप्तिः स्यात् ललाटदेशे स्फुरति स्थानप्रवृद्धिः भूत्राणमध्ये स्फुरति प्रिय संगमः स्यात् नासाक्षिमध्ये स्फुरति जलाक दु.क्ष.न. ॥ भाषा ॥ संहार करे, पाताल में नीचे होय तो सर्व संपदा होय, ये दश छींक हैं. और गमनसमय में आपकूही छींक आवे तो महाभय जाननो, और नवीन वस्त्र आभरण धारण करतीसमयमैं छींक होय तो तैसोही लाभ होय, और जो स्नानके अंतमें दीप्ता दिशामें छींक होय तो दुष्टस्नान फिर करावे, और रोगीको पूछनी समयमें छींक होय तौ वैद्यके नहीं करवेके अर्थ जानना और वैद्यकू बुलावे जाय जिनकूं होय तो रोगीकूं मृत्युदेवेवारो होय, और घर आये वैद्यकूं छींक होयतो रोग नाश होय तत्क्षण ॥ इति श्रीमज्जटाशंकरतनयज्योतिविच्छ्रीधरविरचितायां वसंतराजशाकुनभाषाव्याख्यायां नरेंगिते तृतीयं छिक्काप्रकरणम् ॥३॥ मोऽधुनेति । अब एक एक अंगके स्फुरणको प्रत्यक्ष फलप्रभाव कहें हैं जाके हुये सूं अपने देहते सर्वकूं कर्मविपाकको वा कार्यफलको ज्ञान होय है ॥ १ ॥ मृति Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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