SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आ. १लाभ २ धनलाभ ३ मित्रलाभ ४ अनिमय ४ मित्रसंगम नरेंगिते छिक्काप्रकरणम् । प्रयोजने यत्र कृतेऽपि जातंचतं क्षणात्तद्विनिहंत्यवश्यम्।।कायॊत्सुकेनापि मनागपीदं तस्मादुपेक्ष्यं न विचक्षणेन ॥९॥ .. ... ॥ टीका ॥ पश्चाच्छकुनानंतरं क्षुतं चेत्ततोऽपिशकुनैः किं स्यात् । तेनैव तेषां प्रतिषेधनात् यतः जातानुजाताञ्च्छकुनान्क्षुतं निहंति अत्र संशयो न कार्य इत्यर्थः॥८॥प्रयोजन इति॥कृतेपिप्रयोजने कृते कार्योदेशेयत्र क्षुतं जातं तदा क्षणात् क्षणमात्रेण तत्कार्यमवश्यं विनिहति कार्योत्सुकेनापि पुंसाक्षुते जाते मनाक्प्रतीक्ष्यं विचक्षणेन तस्मात् कार्योंत्सुक्यान उपेक्ष्यम्न उपेक्षाविषयीकार्यमित्यर्थः॥९॥मतांतरेतु पथिप्रस्थितस्य अभिमुखे छिक्का नरस्य मरणप्रदा भवति दक्षिणापिन शुभदावामा पृष्ठभागोद्भवाच शुभदा ग्रामप्रवेशे तु वामा अ-। अष्टसु दिक्षु प्रतिप्रहरं छिकायाः शुभाशुभसूचकं चक्रम् ॥ शुभदा दक्षिणाशुभा पृष्ठोद्भवा | ई० . १ लाम पराजयकरी संमुखा लाभप्र- २ नाश | २ मित्रदर्शन दा गृहोपविष्टस्य किंचित्कार्य | ३ व्याधि ३ शुभवार्ता ४ अग्निभय कर्तुकामस्य पुंसः दिग्विभाग-- जनित फलं यथा पूर्वस्यां ध्रुवं| १ शत्रुभय लाभः अग्नौ हानिः दक्षिणस्यां। २ रिपुसंग ३ लाभ मरणं नैर्ऋत्यामुढेगः पश्चिमा- ४ भोजन या सर्वसंपत् वायव्यां शुभवा नै श्रिवणम् उत्तरस्यां धन लाभ । २ मित्रभेट लाभः स्यात् ईशान्यां श्रीवि.] ३ मित्रलाभ ३ कलह ३ शुभवार्ता जयश्च तथा ब्रह्मस्थानेपियं. रमन थांतरेऽप्येवम॥"पूर्वे छिक्का भवेन्मृत्युरानेय्यां शोक एव च ॥ हानिश्च दक्षिणे भागे ॥ भाषा ॥ विति ॥ जो शकुनके आदिमें छींक होय फिर शकुन होय तो कुछनहीं, और शकुन हुये पीछे छींक होय तोभी शकुन करकै कुछ नहीं होय, छींक हायवेसू शकुनके फल मिटजायँ हैं यामें संदेह नहीं करनो योग्य है ॥ ८ ॥ प्रयोजन इति ॥ कोई कार्यको उद्देश करै वा समयमें छौंक होय तो कार्य नष्ट होय जाय कार्यवान् पुरुषकै छींक होय तो ठहर जाय फिरजाय, और छींक हुये पै कार्यकी जलदीसू चलो कहा होय है ऐसो नहीं करनो उचित है ।। ॥९॥ मतांतर कहैहैं ।। प्रयाण करवेवारे पुरुषकू मार्गमें सन्मुख छींक होय तो मनुष्यकू मरणदे गंता १ लाभ २ मत्युभय ३ नाश .४ कलि वा० १ स्त्रीलाभ १लाभ १दूरगमन २ हर्ष । ४.चोर Ahol.Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy