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मिश्रित प्रकरणम् ४.
(६५)
जातोदये दीप्तककुब्विभागे प्रशांतद्विग्जेन कृतानुनादः || अनर्थशंकां शकुनो विधाय निःसंशयं निष्फलतां प्रयाति ॥ ॥ ६८ ॥ प्रशांतदिग्जो विहितानुनादो यदा भवेद्दीप्तदिगुत्थि - तेन ॥ श्रेयस्तदानीं शकुनः प्रदर्श्य प्रयाति वैफल्यमवश्यमेव ॥ ६९ ॥ पंचषाणि शकुनानि देहिनामुत्तरोत्तरकृतोदयानि चेत्। पूर्वपूर्वमभिबाध्य निश्चितं तद्ददाति शकुनोंतिमः फलम् ॥ ७० ॥
॥ टीका ॥
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मार्गस्तस्मान्निवर्तनेन वर्तनेन द्वे गती भवतः । इत्थं शकुनानामष्टौ गतयः पुरः अग्रे अष्टौ गतयः पृष्ठे च तथा चाग्रपृष्ठाभ्यां षोडश गतयो निगदिताः ॥६७॥ जातोदय इति ॥ दीप्तककुब्विभागे जातोदये शकुने सति प्रशांत दिग्जेन कृतानुनाद इति प्रशांतदिक्षु जातः प्रशांतदिग्जस्तच्छकुनेन कृतोऽनुनादो येन स तथा एवंविधो भ. वेत् तदा शकुनः अनर्थशंकां विधाय निःसंशयं निश्चितं निष्फलं प्रयाति ॥ ६८ ॥ प्रशांत इति ॥ दीप्तदिगुत्थितेन शकुनेन विहितानुनादः प्रशांतदिग्जो यदा शकुनो भवति तदानीं श्रेयः प्रदर्श्य शकुनः अवश्यमेव वैफल्यं प्रयाति ॥ ६९ ॥ पंचषाणीति ॥ उत्तरोत्तरकृतोदयानि उत्तरमुत्तरमग्रे कृतो विहितः उदयो यै
॥ भाषा ॥
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तो वांथे माऊंते दक्षिणभाग माऊंकूं जाय, और जो सन्मुख आवे ताकूं अभिमुखी कहै है अगाडीसूं उठकरके पीछेकूं जाय, तांसूं पराङ्मुखी कहे हैं और अगाडीते उठकरके ऊर्ध्व नाम ऊपरकूं गमन करे याकूं ऊर्ध्वमुखी कहै हैं, और ऊपर नीचो मुख करके पडे ताकूं अधोमुखी कहे हैं, और वांयो जेमनो इनके अंतर द्वारमार्गस्तन वेष्टन करके अर्ध होय या प्रकार शकुननकी आठ प्रकारकी गति है और आगे पृष्ठ अंगाडी पिछाडी करके षोडशगती ॥ ६७ ॥ जातोदय इति ॥ दीप्तदिशामें शकुन उदय होय ता पीछे शांत दिशाकरके कियोहै शब्द जाने ऐसो शकुन अनर्थकी शंका करे है निश्चय निष्फलता प्राप्त होय ॥ ६८ ॥ प्रशांत इति ॥ दीप्तदिशामें नाद होय और शांतदिशामें शकुन होय तब कल्याण होय बो शकुन अवश्यही विशेष फलदाता होय ॥ ६९ ॥ पंचषाणीति ॥ जा पुरुषकूं उत्तरो
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