SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४४ ) अवगाहन करने वाली जिहन्द्रिय है क्यों कि इसका विस्तार अंगुल पृथक्त्व ( दो से नौ अंगुली ) है। इससे स्पर्शनेन्द्रिय संख्येय गुण प्रदेश में अवगाहन करने वाली है, असंख्येय गुण की अवगाहन वाली नहीं, क्योंकि इसका उत्कर्ष लाख योजन का प्रमाण इस प्रकार इस सम्बन्ध में प्रज्ञापना सूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद के प्रथम उद्देश में कहा हैं। ___ अंगुल शब्द से यहाँ अात्मांगुल अर्थ लेना चाहिए तथा स्पर्शेन्द्रिय का प्रधुत्व उत्सेध अंगुल से एवं शेष इन्द्रियों का अात्मांगुल से जानना चाहिए। प्रश्न ३५:-मनुष्य लोक में कल्पवृक्ष सचित्त हैं अथवा अचित्त ! वनस्पति विशेष हैं या पृथ्वी कायमय ? विस्रसा परिणाम से परिणत हैं या देवाधिष्ठित ? उत्तर :-मनुष्य लोक में कल्पवृक्ष सचित्त, वनस्पति विशेष एवं युगलिकों के पूण्य समुह के उदय से स्वाभाविक ही तथा विध परिणाम से परिणत होते हैं। यह अधिकार प्राचाराङ्ग वृत्ति के द्वितीय श्रत स्वन्ध की पीठिका में तथा जम्बू द्वीप प्रज्ञप्तिसत्र की वृति में वृक्षाधिकार के प्रकरण में भी आता है। आचाराङ्ग वृत्ति पाठ :-"तत्र प्रधानाय त्रिधा सचितमपि द्विपदादि भेदात् त्रिधैव, तत्र द्विपदेषु तीर्थङ्करः, Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy