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________________ नहीं छल सकते,और जो अर्धसागरोपमादि स्थिति से युक्त हों, वे पूर्वभव के वर का स्मरण होने पर यतना युक्त अप्रमादी साधु को छल भी सकते हैं, क्योंकि उनमें शक्ति का सद्भाव होता है। इसके सम्बन्ध में निशोथचूणि के उन्नीस उद्देश में कहा यथा-"पडिसिद्ध काले सज्झायं करे तस्स इमे दोसा, अन्न तर गाहा सराग संयतो सरागत णतो इंदिय विसयादि अन्नतर प्रमादजुत्तो हवेज्ज विसेस तो महा महेसु तं पमादजुत्तं पडिणीय देवता अप्पड्ढिया खित्तादि छलणं करेज्जा, जयणा जुत्तं पुण साहुं जो अप्पडिढतो देवो अद्धोदहीतो ऊणहिती सो न सक्केति छलितु अद्धसागरोवहितितो पुण जयणा जुत्त पि छलेति, अस्थि से सामथ तं पि पुचवेर संबध सरणतो कात्ति छलेज्जा इत्यादि महा महेसुत्ति इन्द्र महोत्सवादिषु इत्यर्थः।" इसका भावार्थ ऊपर की पंक्तियों में आ गया है। प्रश्न :-२३-अपनी ग्यारह प्रतिमाओं को वहन करने वाला श्रावक सम्यक् प्रकार से प्रतिमा का वहन करके पुनः घर अाता है या नहीं ? उत्तरः-प्रतिमा वहन करने के पश्चात् कोई श्रावक पुनः घर भो पाता है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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